Thursday, May 13, 2010

जब दुःख आयें तब बड़ों की शरण लेनी चाहिए। किसी न किसी की शरण लिये बिना हम लोग जी नहीं सकते, टिक नहीं सकते। दुर्बल को बलवान की शरण लेनी चाहिए।
बलवान कौन है ? जो दण्ड-बैठक करता है वह बलवान है ? जिसके पास सारे विश्व की कुर्सियाँ अत्यंत छोटी पड़ जाती हैं वह सर्वेश्वर सर्वाधिक बलवान है। तुम उस बलवान की शरण चले जाओ। बलवान की शरण गाँधीनगर में नहीं, बलवान की शरण दिल्ली में नहीं, किसी नगर में नहीं बल्कि वह तुम्हारे दिल के नगर में सदा के लिए मौजूद है। सच्चे हृदय से उनकी शरण चले गये तो तुरन्त वहाँ से प्रेरणा, स्फूर्ति और सहारा मिल जाता है। वह सहारा कइयों को मिला है। हम लोग भी वह सहारा पाने के लिए तत्पर हैं इसीलिए सत्संग में आ पहुँचे हैं।
तुम कब तक बाहर के सहारे लेते रहोगे ? एक ही समर्थ का सहारा ले लो। वह परम समर्थ परमात्मा है। उससे प्रीति करने लग जाओ। उस पर तुम अपने जीवन की बागडोर छोड़ दो। तुम निश्चिन्त हो जाओगे तो तुम्हारे द्वारा अदभुत काम होने लगेंगे परन्तु राग तुम्हें निश्चिन्त नहीं होने देगा। जब राग तुम्हें निश्चिन्त नहीं होने दे तब सोचोः
'हमारी बात तो हमारे मित्र भी नहीं मानते तो शत्रु हमारी बात माने यह आग्रह क्यों ? सुख हमारी बात नहीं मानता, सदा नहीं टिकता तो दुःख हमारी बात बात कैसे मानेगा ? लेकिन सुख और दुःख जिसकी सत्ता से आ आकर चले जाते हैं वह प्रियतम तो सतत हमारी बात मानने को तत्पर है। अपनी बात मनवा-मनवाकर हम उलझ रहे हैं, अब तेरी बात पूरी हो... उसी में हम राजी हो जाएँ ऐसी तू कृपा कर, हे प्रभु !

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