Thursday, July 31, 2008

सूर्य ग्रहण : १ अगस्त २००८ , दिन : शुक्रवार
कुछ आवश्यक जानकारी
॥ ग्रहण विधि निषेध ॥

सूर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुध्द बिम्ब देख कर भोजन करना चाहिये । (१ प्रहर = ३ घंटे)

ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं ।

ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्दयेश्य करके जल मे जल डाल देना चाहिए । ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेनेवाले को उसका दोष भी नहीं लगता।

कोइ भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये ।

ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थो मे तिल या कुशा डाली होती है, वे पदार्थ दुषित नहीं होते । जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिये ।

ग्रहण वेध के प्रारंभ मे तिल या कुशा मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति मे ही करना चाहिये और ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिये ।

ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है ।

तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किंतु संतानयुक्त ग्रहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिये।

'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है ।

'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये ।


संकलन : http://hariombooks.googlepages.com/hindi_grahan.htm

अनमोल सत्संग : ॐ ॐ

"कपट गाँठ मन में नहीं सबसे सहज स्वभाव ।
नारायण वा संत की नदी किनारे नाव ॥ "
अपनी मानते हैं तो हमको राग पैदा होगा और हम फसेंगे । अपनी भले ही न हो पर आप दूसरों का हित चाहो । हित आए इसीलिए हित मत करो , बस अपना कर्तव्य करो ।

"मेरो चिन्त्यो होत नहीं , हरि को चिन्त्यो होय ।
हरि को चिन्त्यो हरि करे , मैं रहूँ निश्चिंत ॥ "


यदि कार्य शास्त्र अनुकूल हो और हित का हो तो करो । सभी दुनिया के गुरु मिलकर भी एक आदमी को साक्षात्कार नहीं करा सकते जब तक उसमें स्वयं तड़फ पैदा नहीं होगी ।
"ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया तो अंत में टोना ही पड़ेगा.."
वाह-वाही का रस लिया और निंदा हुई तो रोओगे ।
चाहे बहार का सुख हो , चाहे भावना का सुख हो , सदा एक सा नहीं रहेगा । ये प्रकृति का सिद्धांत है ।
सत् तीनों कालों में एक सा होता है . सच और भावनाएं सबकी अलग-अलग हैं ।
आकाश व्यापक है . आकाश का कभी कुछ नहीं बिगड़ता . आकाश सबको ठौर देता है ।
छोटे में छोटा देखना हो तो परमात्मा और बड़े में बड़ा देखना हो तो परमात्मा ।
ये वहम है की हम इतना जप करेंगे तो परमात्मा मिलेगा . अरे .... वो सदा मिला हुआ है ।
सब आता - जाता है पर परमात्मा वाही का वाही । उस परमात्मा को पाए बिना कुछ भी पाया , टिकेगा नहीं ।
"सुन्या सखणा कोई नहीं , सबके भीतर लाल .
मुरख ग्रंथि खोले नहीं , करमी भयो कंगाल .. "


पति से अलग या पत्नी से अलग रहोगे तभी परमात्मा मिलेगा ... नहीं - नहीं ... वो तो सदा मिला हुआ है । हटानी है तो सिर्फ़ अपनी वासना हटाओ फिर चाहे घर में रहो या बाहर .....
करने की शक्ति है तो औरों के लिए करो तो करने की शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा । मानने की शक्ति है तो परमात्मा को मानो तो मानने की शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा । जानने की शक्ति है तो परमात्मा को जानो तो जानने के शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा ।
ईश्वर को पाने की इच्छा मात्र से पा सकते हो , इतना सरल है ।

नारायण हरि --
आज सुबह (३१ जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन । यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

Wednesday, July 30, 2008

अनमोल सत्संग : ॐ ॐ
हरि ॐ .... प्लुत गुंजन .......
निःसंकल्प्ता से विश्रांति मिलती है और सहज अवस्था प्रकट होती है , उसको सहज समाधि भी बोलते हैं ।
भगवान् के नाम रोग मिटाते हैं ।
ॐ अच्युताय नमः - २१ बार मंत्र जप कर पानी पियें अथवा किसी को दें , बहुत लाभ होता है ।
औषधि लेते समय बांया नथुना चले और दांया नथुना बंद कर दें ।
हाजमा ठीक करना हो तो गाय का घी अथवा सरसों का तेल नाभि पर लगायें । जिस प्रकार घड़ी के कांटे घूमते हैं उसी प्रकार नाभि पर हल्की मसाज करें ।
प्रिय वाणी सहित दान कलियुग में बड़ा लाभ देता है । कटु वाणी नहीं , धन का अंहकार नहीं करना चाहिए ।
आठ प्रकार के दान होते हैं लेकिन सत्संग का दान .... आहा ....
भक्ति का दान , सत्संग का दान बहुत ऊँचा है ।
हरि ॐ का उच्चारण करके चुप हो जाते हैं तो ध्यान में विश्राम मिलता है और हमारे दोषों को मिटने की शक्ति मिलती है ।

हरि ॐ ...... गुंजन .....
जितनी देर जप करें उतनी देर चुप हो जायें , बहुत ऊँची साधना हो जायेगी ।
"एक साधे सब सधे ..... "
"कबीरा इह जग आए के , बहुत से किन्हें मीत
जिन दिल बंधा एक से , वो सोये निश्चिंत "
"कबीरा मन निर्मल भयो , जैसे गंगा नीर
पीछे पीछे हरि फिरे , कहत कबीर कबीर "
ब्राह्मण जटाशंकर और संत रैदास की कथा ....

आपके संकल्प में सामर्थ्य तब आता है जब आप चुप हो जाते है ।
हम भगवान् और संतो को तुच्छ चीज देते हैं लेकिन बदले में जो हमें मिलता है वो तो महाराज ....
हम जो देते हैं वो दिखता है और जो दिखता है वो नश्वर है । जो महापुरुष देते हैं उसका तो बखान नहीं किया जा सकता ।

नारायण हरि --
आज सुबह (३० जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन । यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

Friday, July 25, 2008

अनमोल सत्संग : ॐ ॐ
सावन में भगवान् शिव जी की पूजा का विशेष महत्त्व है । बिल्व पत्र भगवान् शंकर को बहुत प्रिय हैं । बिल्व के तीन पत्र माना रजो गुण, तमो गुण और सतो गुण भगवान् शंभ सदाशिव को अर्पित कर देना । बिल्व पत्र वायु सम्बन्धी रोगों को समाप्त करता है ।
बुद्धि की ऊंचाई का फल है परिस्थितियों में सम रहना ।
मरने वाले शरीर को हम अपना मानते हैं इसीलिए हम सोये हुए हैं ।
"मोह निशा सब सोवन हारा ..... "
सारे विश्व का राज्य मिल जाए और ब्रह्म सुख न मिला तो भी घाटा है ।
तीन टूक कोपीन की भाजी बिना लूण .....
"वो ना थे मुझ से दूर ना मैं उनसे दूर था ।
आता ना नजर तो नजर का कसूर था ॥ "


मनुष्य जन्म सार्थक करने के लिए बुद्धि मिली है । खाली पेट भरने के लिए , मजदूरी करके जीवन बिताने के लिए ही हमारा जन्म नही हुआ है ।
ह्रदय में बसे हृदयेश्वर को पाने के लिए वास्तविकता में हमारा जन्म हुआ है ।
मनुष्य तू इतना ऊँचा है कि तू भगवान् का गुरु बन सकता है , भगवान् का भक्त बन सकता है , भगवान् का सखा बन सकता है , भगवान् का मित्र बन सकता है , भगवान् का प्रेमी बन सकता है और तो और भगवान् का माँ -बाप भी बन सकता है ।
भगवान् भाव के भूखे हैं वो किसी व्यंजन इत्यादि से खुश नही होते ।
बुद्धि का आदर करना है तो ये बात ठान लो कि एक है नित्य और एक है अनित्य । प्रकृति अनित्य है और परमात्मा नित्य है ।
सावन में हरा शाक और दूध ज्यादा नहीं लेना चाहिए ।

बिनु सत्संग विवेक न होई , राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ..

नारायण हरि
--आज सुबह (२५ जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन ।
यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

Thursday, July 24, 2008

: विडियो सत्संग :

सारा जगत वासुदेव की सत्ता से भरा हुआ है ।
भले वासुदेव परमात्मा का अनुभव अभी ना होता परन्तु ये पक्का कर लो की वह सर्व व्याप्त है ।
ऐसा खेल रच्यो मेरे दाता , जहाँ देखूं वहां तू को तू ......
वासुदेव सर्वमिति ....

मेरे मन की हो! यदि ऐसी भावना है तो बड़ा भारी दोष है ।
भगवन बड़े दयालु हैं की सब हमारी चाही नही होती . गुरुदेव ने बहुत से उदाहरण भी दिए ।
अपनी चाही का आग्रह मत करो ।
नौ ग्रह भी इतना नुक्सान नही कर सकते जितना अपनी चाही जैसा ग्रह नुक्सान कर सकता है ।
किसी को डांटना भी पड़ता है तो "परस्परं भावयन्तु" के भाव रखते हुए कि उसका मंगल कैसे हो? उसका विकास कैसे हो?
करने की शक्ति , मानाने की शक्ति और जानने की शक्ति का सदुपयोग करो ।
परमात्मा जो समग्र सृष्टि को चला रहा है वो तुम्हारा परम हितैषी है , ऐसा अडिग विश्वास रखो ।
जानो तो अपने को जानो , करो तो दूसरों के हित की करो और मानो तो प्रभु को मानो ।
संत कबीर वाणी :
"हरि सम जग कछु वास्तु नहीं , प्रेम पंथ सम पंथ .
सतगुरु सम सज्जन नहीं , गीता सम नहीं ग्रन्थ "


नारायण हरि
--आज सुबह (२४ जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन ।
यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

Tuesday, July 22, 2008

गुरु स्तुति : भजन

गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द
गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु मेरा देऊ , अलख अभेऊ , सर्व पूज चरण गुरु सेवऊ
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु का दर्शन .... देख - देख जीवां , गुरु के चरण धोये -धोये पीवां

गुरु बिन अवर नही मैं ठाऊँ , अनबिन जपऊ गुरु गुरु नाऊँ
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु मेरा ज्ञान , गुरु हिरदय ध्यान , गुरु गोपाल पुरख भगवान्
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

ऐसे गुरु को बल-बल जाइये ..-२ आप मुक्त मोहे तारें ..

गुरु की शरण रहो कर जोड़े , गुरु बिना मैं नही होर
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु बहुत तारे भव पार , गुरु सेवा जम से छुटकार
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

अंधकार में गुरु मंत्र उजारा , गुरु के संग सजल निस्तारा
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु पूरा पाईया बडभागी , गुरु की सेवा जिथ ना लागी
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत


संकलित : पंजाबी भजन

Thursday, July 17, 2008

बापूजी ने इस मंत्र का जप बताया है गुरुकुल की शान्ति हेतु :

OM NAMO SIDDHI VINAYKAY GURUKUL ASHRAME SHANTI KARTRE SARVA VIGHNA PRASHMNAY SHRI OM SWAHA !!

ॐ नमो सिद्धि विनायकाय गुरुकुल आश्रम शांति कर्तरे सर्व विघ्न प्रशम्नाय श्री ॐ स्वाहा ।

अधिकं जपं , अधिकं फलं । अतः अधिक से अधिक इस मंत्र का जप करने की कृपा करें ।

Tuesday, July 15, 2008

अनमोल वचन :

सर्व दृश्य को भूलना
जानके असत् संसार ।
चित्त ब्रह्म में लीन कर
यही है सच्चा सार ॥
- परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू

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'गीता'
विवेकरूपी वृक्षों का
एक अपूर्व बगीचा है
यह सब सुखों की नींव है
सिद्धान्त-रत्नों का भण्डार है
नवरसरूपी अमृत से
भरा हुआ समुद्र है
खुला हुआ परम धाम है और
सब विद्याओं की मूल भूमि है
- संत ज्ञानेश्वर महाराज

Tuesday, July 08, 2008

विद्या लाभ के लिये मंत्र
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ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वग्वादिनि सरस्वति मम जिह्वाग्रे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा

इस मंत्र को आषाढ मास मे जब उत्तराषाढा नक्षत्र हो तब अर्थात 18 जुलाई २००८ को दिन मे १०८ बार जप ले
फिर इसी दिन की रात्रि के समय ११ से १२ बजे के बीच जीभ पर लाल चंदन से ' ह्रीं ' मन्त्र लिख दे
जिसकी जीभ पर यह मंत्र इस विधि से लिखा जायेगा, उसे विद्या लाभ तथा विद्वत्ता की प्राप्ति होगी
सभी लोग इसका लाभ ले तथा दुसरो को दिलावे