Thursday, December 04, 2008

जीवन रसायन :
१) जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्षों का काम कर लेना होगा । उसे इस युग की रफ़्तार से बहुत आगे निकलना होगा । जैसे स्वप्न में मान-अपमान, मेरा-तेरा, अच्छा-बुरा दिखता है और जागने के बाद उसकी सत्यता नहीं रहती वैसे ही इस जाग्रत जगत में भी अनुभव करना होगा । बस .... हो गया हजारों वर्षों का काम पूरा । ज्ञान की यह बात ह्रदय में ठीक से जमा देने वाले कोई महापुरुष मिल जाएँ तो हजारों वर्षों के संस्कार, मेरे तेरे के भ्रम को दो पल में ही निवृत कर दें और कार्य पूरा हो जाए ।

Wednesday, November 26, 2008

Practice Makes Everything Possible
(Excerpts from the satsanga of Pujya Bapuji)

Vasishthaji, the Guru of Lord Rama, said, “O Ramaji! Is there any thing or state that can’t be
achieved through practice? Ramaji! If only one persists and doesn’t give up losing heart midway,
one definitely achieves his goal.”
Practice makes everything possible. Even Self-knowledge can be attained through practice. ‘I am beaten, I am worried, I am in trouble’ –if you practise brooding over such problems, you
certainly will create problems for yourself. Howsoever great your woes, do not brood over
them. If a speeding car splashes muddy water on you and some of it even enters your mouth,
don’t grumble; rather think positively ‘So many times have I partaken of the Lord’s
charanāmrita; today, I got to taste the charanāmrita of a car!’ When the dirty water has already
entered your mouth, there is no use whining. Be always of good cheer, this is the art of living.
If you continue making persistent efforts without getting tired midway and retracing your steps,
then you will certainly attain your goal. With determined practice you can materialise even nonexistent objects.
There is a detailed account in the ‘Sri Yoga Vasishtha Maharamayana’ about a great ascetic who
desired to become Lord Brahma, the Creator, and became so through determined yogic
practices. But then, how can the Creation have another Creator, i.e. another Lord Brahma? So
profound and intense was his ascetic practice that he created another universe with another
sun; thus becoming another Lord Brahma for his own creation!

The jivātman has miraculous power. He can attain just anything he wants, become as great as
he dreams to be through untiring efforts. With self-effort and relentless perseverance one can
surely attain anything and everything.
‘Whenever there is a true soul to soul affection, union will of a surety follow.’
Maa Parvati got determined to have Lord Shiva as her consort and she succeeded too. Dhruva
aspired for darshana of Lord Vishnu and he finally had it. Shabari wanted to have darshana of
Lord Rama and the Lord came in person to meet her. Dhanna’s persistent entreaties made Lord
Krishna manifest Himself from a stone. Rami Ramdasa, the 8 year old brother of Samartha
Ramadasa, wanted to make Hanumanaji manifest himself in an idol and he succeeded in doing
so, whereupon he even had a talk with Hanumanji and received his blessings as well. Thus he
became famous at the tender age of 8 years.

(Read the complete article in Apr 2008 Rishi Prasad.)

Saturday, August 23, 2008

श्री कृष्ण Janmashtami श्री कृष्ण

Sri Krishna Janmashtami is one of the important famous Hindu festivals that is being celebrated across India. The festival is celebrated with much pomp and gaiety.
According to antecedents, Sri Krishna Janmashtami is the birthday of Lord Krishna, the eighth avatar of Lord Vishnu. The festival is observed on the eighth day of the dark half i.e., Krishna Paksh of the month of August Sravanam / Sravana Maasam / Aavani of Hindu calendar (generally late August or early September of the Gregorian / English calendar month) when the Rohini Star is ascendant.
The festival is observed by fasting on the previous day of Saptami day (the seventh day). This is followed by a night long vigil commemorating the birth of Lord Krishna at night and his immediate removal by his father to a fosterer home for safe keeping. At midnight, the deity of the infant Krishna is bathed, placed in a cradle and worshiped.
In the early morning, ladies draw patterns of little children's feet outside the house with rice-flour paste, walking towards the house। Earlier kids are dressed and decorated as the Lord Krishna during his childhood. This symbolizes the entry of the infant Krishna into his foster-home. This custom is popular in some communities of South India. After ablutions, morning prayers and worship, the devout break their fast with prasadam, food that has first been offered to God. During the fore-noon hours, the "Dahi-Handi" custom is celebrated in some parts of the Deccan. This is followed by sumptuous mid-day feasts, where extended families customarily get together. Sweets made of milk and butter are traditionally prepared on this occasion.
Accept our wishes of Sri Krishna Janmashtami. Jai Jai Sri Radhe

Thursday, July 31, 2008

सूर्य ग्रहण : १ अगस्त २००८ , दिन : शुक्रवार
कुछ आवश्यक जानकारी
॥ ग्रहण विधि निषेध ॥

सूर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुध्द बिम्ब देख कर भोजन करना चाहिये । (१ प्रहर = ३ घंटे)

ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं ।

ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्दयेश्य करके जल मे जल डाल देना चाहिए । ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेनेवाले को उसका दोष भी नहीं लगता।

कोइ भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये ।

ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थो मे तिल या कुशा डाली होती है, वे पदार्थ दुषित नहीं होते । जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिये ।

ग्रहण वेध के प्रारंभ मे तिल या कुशा मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति मे ही करना चाहिये और ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिये ।

ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है ।

तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किंतु संतानयुक्त ग्रहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिये।

'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है ।

'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये ।


संकलन : http://hariombooks.googlepages.com/hindi_grahan.htm

अनमोल सत्संग : ॐ ॐ

"कपट गाँठ मन में नहीं सबसे सहज स्वभाव ।
नारायण वा संत की नदी किनारे नाव ॥ "
अपनी मानते हैं तो हमको राग पैदा होगा और हम फसेंगे । अपनी भले ही न हो पर आप दूसरों का हित चाहो । हित आए इसीलिए हित मत करो , बस अपना कर्तव्य करो ।

"मेरो चिन्त्यो होत नहीं , हरि को चिन्त्यो होय ।
हरि को चिन्त्यो हरि करे , मैं रहूँ निश्चिंत ॥ "


यदि कार्य शास्त्र अनुकूल हो और हित का हो तो करो । सभी दुनिया के गुरु मिलकर भी एक आदमी को साक्षात्कार नहीं करा सकते जब तक उसमें स्वयं तड़फ पैदा नहीं होगी ।
"ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया तो अंत में टोना ही पड़ेगा.."
वाह-वाही का रस लिया और निंदा हुई तो रोओगे ।
चाहे बहार का सुख हो , चाहे भावना का सुख हो , सदा एक सा नहीं रहेगा । ये प्रकृति का सिद्धांत है ।
सत् तीनों कालों में एक सा होता है . सच और भावनाएं सबकी अलग-अलग हैं ।
आकाश व्यापक है . आकाश का कभी कुछ नहीं बिगड़ता . आकाश सबको ठौर देता है ।
छोटे में छोटा देखना हो तो परमात्मा और बड़े में बड़ा देखना हो तो परमात्मा ।
ये वहम है की हम इतना जप करेंगे तो परमात्मा मिलेगा . अरे .... वो सदा मिला हुआ है ।
सब आता - जाता है पर परमात्मा वाही का वाही । उस परमात्मा को पाए बिना कुछ भी पाया , टिकेगा नहीं ।
"सुन्या सखणा कोई नहीं , सबके भीतर लाल .
मुरख ग्रंथि खोले नहीं , करमी भयो कंगाल .. "


पति से अलग या पत्नी से अलग रहोगे तभी परमात्मा मिलेगा ... नहीं - नहीं ... वो तो सदा मिला हुआ है । हटानी है तो सिर्फ़ अपनी वासना हटाओ फिर चाहे घर में रहो या बाहर .....
करने की शक्ति है तो औरों के लिए करो तो करने की शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा । मानने की शक्ति है तो परमात्मा को मानो तो मानने की शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा । जानने की शक्ति है तो परमात्मा को जानो तो जानने के शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा ।
ईश्वर को पाने की इच्छा मात्र से पा सकते हो , इतना सरल है ।

नारायण हरि --
आज सुबह (३१ जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन । यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

Wednesday, July 30, 2008

अनमोल सत्संग : ॐ ॐ
हरि ॐ .... प्लुत गुंजन .......
निःसंकल्प्ता से विश्रांति मिलती है और सहज अवस्था प्रकट होती है , उसको सहज समाधि भी बोलते हैं ।
भगवान् के नाम रोग मिटाते हैं ।
ॐ अच्युताय नमः - २१ बार मंत्र जप कर पानी पियें अथवा किसी को दें , बहुत लाभ होता है ।
औषधि लेते समय बांया नथुना चले और दांया नथुना बंद कर दें ।
हाजमा ठीक करना हो तो गाय का घी अथवा सरसों का तेल नाभि पर लगायें । जिस प्रकार घड़ी के कांटे घूमते हैं उसी प्रकार नाभि पर हल्की मसाज करें ।
प्रिय वाणी सहित दान कलियुग में बड़ा लाभ देता है । कटु वाणी नहीं , धन का अंहकार नहीं करना चाहिए ।
आठ प्रकार के दान होते हैं लेकिन सत्संग का दान .... आहा ....
भक्ति का दान , सत्संग का दान बहुत ऊँचा है ।
हरि ॐ का उच्चारण करके चुप हो जाते हैं तो ध्यान में विश्राम मिलता है और हमारे दोषों को मिटने की शक्ति मिलती है ।

हरि ॐ ...... गुंजन .....
जितनी देर जप करें उतनी देर चुप हो जायें , बहुत ऊँची साधना हो जायेगी ।
"एक साधे सब सधे ..... "
"कबीरा इह जग आए के , बहुत से किन्हें मीत
जिन दिल बंधा एक से , वो सोये निश्चिंत "
"कबीरा मन निर्मल भयो , जैसे गंगा नीर
पीछे पीछे हरि फिरे , कहत कबीर कबीर "
ब्राह्मण जटाशंकर और संत रैदास की कथा ....

आपके संकल्प में सामर्थ्य तब आता है जब आप चुप हो जाते है ।
हम भगवान् और संतो को तुच्छ चीज देते हैं लेकिन बदले में जो हमें मिलता है वो तो महाराज ....
हम जो देते हैं वो दिखता है और जो दिखता है वो नश्वर है । जो महापुरुष देते हैं उसका तो बखान नहीं किया जा सकता ।

नारायण हरि --
आज सुबह (३० जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन । यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

Friday, July 25, 2008

अनमोल सत्संग : ॐ ॐ
सावन में भगवान् शिव जी की पूजा का विशेष महत्त्व है । बिल्व पत्र भगवान् शंकर को बहुत प्रिय हैं । बिल्व के तीन पत्र माना रजो गुण, तमो गुण और सतो गुण भगवान् शंभ सदाशिव को अर्पित कर देना । बिल्व पत्र वायु सम्बन्धी रोगों को समाप्त करता है ।
बुद्धि की ऊंचाई का फल है परिस्थितियों में सम रहना ।
मरने वाले शरीर को हम अपना मानते हैं इसीलिए हम सोये हुए हैं ।
"मोह निशा सब सोवन हारा ..... "
सारे विश्व का राज्य मिल जाए और ब्रह्म सुख न मिला तो भी घाटा है ।
तीन टूक कोपीन की भाजी बिना लूण .....
"वो ना थे मुझ से दूर ना मैं उनसे दूर था ।
आता ना नजर तो नजर का कसूर था ॥ "


मनुष्य जन्म सार्थक करने के लिए बुद्धि मिली है । खाली पेट भरने के लिए , मजदूरी करके जीवन बिताने के लिए ही हमारा जन्म नही हुआ है ।
ह्रदय में बसे हृदयेश्वर को पाने के लिए वास्तविकता में हमारा जन्म हुआ है ।
मनुष्य तू इतना ऊँचा है कि तू भगवान् का गुरु बन सकता है , भगवान् का भक्त बन सकता है , भगवान् का सखा बन सकता है , भगवान् का मित्र बन सकता है , भगवान् का प्रेमी बन सकता है और तो और भगवान् का माँ -बाप भी बन सकता है ।
भगवान् भाव के भूखे हैं वो किसी व्यंजन इत्यादि से खुश नही होते ।
बुद्धि का आदर करना है तो ये बात ठान लो कि एक है नित्य और एक है अनित्य । प्रकृति अनित्य है और परमात्मा नित्य है ।
सावन में हरा शाक और दूध ज्यादा नहीं लेना चाहिए ।

बिनु सत्संग विवेक न होई , राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ..

नारायण हरि
--आज सुबह (२५ जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन ।
यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

Thursday, July 24, 2008

: विडियो सत्संग :

सारा जगत वासुदेव की सत्ता से भरा हुआ है ।
भले वासुदेव परमात्मा का अनुभव अभी ना होता परन्तु ये पक्का कर लो की वह सर्व व्याप्त है ।
ऐसा खेल रच्यो मेरे दाता , जहाँ देखूं वहां तू को तू ......
वासुदेव सर्वमिति ....

मेरे मन की हो! यदि ऐसी भावना है तो बड़ा भारी दोष है ।
भगवन बड़े दयालु हैं की सब हमारी चाही नही होती . गुरुदेव ने बहुत से उदाहरण भी दिए ।
अपनी चाही का आग्रह मत करो ।
नौ ग्रह भी इतना नुक्सान नही कर सकते जितना अपनी चाही जैसा ग्रह नुक्सान कर सकता है ।
किसी को डांटना भी पड़ता है तो "परस्परं भावयन्तु" के भाव रखते हुए कि उसका मंगल कैसे हो? उसका विकास कैसे हो?
करने की शक्ति , मानाने की शक्ति और जानने की शक्ति का सदुपयोग करो ।
परमात्मा जो समग्र सृष्टि को चला रहा है वो तुम्हारा परम हितैषी है , ऐसा अडिग विश्वास रखो ।
जानो तो अपने को जानो , करो तो दूसरों के हित की करो और मानो तो प्रभु को मानो ।
संत कबीर वाणी :
"हरि सम जग कछु वास्तु नहीं , प्रेम पंथ सम पंथ .
सतगुरु सम सज्जन नहीं , गीता सम नहीं ग्रन्थ "


नारायण हरि
--आज सुबह (२४ जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन ।
यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

Tuesday, July 22, 2008

गुरु स्तुति : भजन

गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द
गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु मेरा देऊ , अलख अभेऊ , सर्व पूज चरण गुरु सेवऊ
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु का दर्शन .... देख - देख जीवां , गुरु के चरण धोये -धोये पीवां

गुरु बिन अवर नही मैं ठाऊँ , अनबिन जपऊ गुरु गुरु नाऊँ
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु मेरा ज्ञान , गुरु हिरदय ध्यान , गुरु गोपाल पुरख भगवान्
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

ऐसे गुरु को बल-बल जाइये ..-२ आप मुक्त मोहे तारें ..

गुरु की शरण रहो कर जोड़े , गुरु बिना मैं नही होर
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु बहुत तारे भव पार , गुरु सेवा जम से छुटकार
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

अंधकार में गुरु मंत्र उजारा , गुरु के संग सजल निस्तारा
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत

गुरु पूरा पाईया बडभागी , गुरु की सेवा जिथ ना लागी
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत


संकलित : पंजाबी भजन

Thursday, July 17, 2008

बापूजी ने इस मंत्र का जप बताया है गुरुकुल की शान्ति हेतु :

OM NAMO SIDDHI VINAYKAY GURUKUL ASHRAME SHANTI KARTRE SARVA VIGHNA PRASHMNAY SHRI OM SWAHA !!

ॐ नमो सिद्धि विनायकाय गुरुकुल आश्रम शांति कर्तरे सर्व विघ्न प्रशम्नाय श्री ॐ स्वाहा ।

अधिकं जपं , अधिकं फलं । अतः अधिक से अधिक इस मंत्र का जप करने की कृपा करें ।

Tuesday, July 15, 2008

अनमोल वचन :

सर्व दृश्य को भूलना
जानके असत् संसार ।
चित्त ब्रह्म में लीन कर
यही है सच्चा सार ॥
- परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
'गीता'
विवेकरूपी वृक्षों का
एक अपूर्व बगीचा है
यह सब सुखों की नींव है
सिद्धान्त-रत्नों का भण्डार है
नवरसरूपी अमृत से
भरा हुआ समुद्र है
खुला हुआ परम धाम है और
सब विद्याओं की मूल भूमि है
- संत ज्ञानेश्वर महाराज

Tuesday, July 08, 2008

विद्या लाभ के लिये मंत्र
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वग्वादिनि सरस्वति मम जिह्वाग्रे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा

इस मंत्र को आषाढ मास मे जब उत्तराषाढा नक्षत्र हो तब अर्थात 18 जुलाई २००८ को दिन मे १०८ बार जप ले
फिर इसी दिन की रात्रि के समय ११ से १२ बजे के बीच जीभ पर लाल चंदन से ' ह्रीं ' मन्त्र लिख दे
जिसकी जीभ पर यह मंत्र इस विधि से लिखा जायेगा, उसे विद्या लाभ तथा विद्वत्ता की प्राप्ति होगी
सभी लोग इसका लाभ ले तथा दुसरो को दिलावे

Monday, June 30, 2008

अनमोल वचन :-

तुम जियो तो ऐसा जियो कि जिसे देखो उसमें बस, अपना आत्मा-ब्रह्म दिखे
ऐसा खाओ कि जो खाओ वह प्रसाद हो जाए ।
जीवन बड़ा कीमती है वैमनस्य और विग्रह से अपने शक्तियों को क्षीण क्यों करना ?
व्यर्थ की चर्चा और व्यर्थ का वाणी-विलास करने से अपनेको बचाओ
सत्य परमात्मा में मन को लगाओ इसी जीवन में धन्यता का अनुभव करो
- परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू
------
बारह कोस चलकर जाने से भी यदि सत्पुरुष के दर्शन मिलते हों तो मैं पैदल चलकर जाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि ऐसे ब्रह्मवेत्ता महापुरुष के दर्शन से कैसा आध्यात्मिक लाभ मिलता है वह मैं अच्छी प्रकार से जानता हूँ
- स्वामी विवेकानन्द
------
तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना
अमानिना मानदेन कीर्तनीयो सदा हरिः
तिनके से भी हलका, वृक्ष से भी अधिक सहनशील, स्वयं मान रहित रहकर तथा दूसरों को मान देकर नित्य भगवान श्रीहरि के नाम का संकीर्तन करना चाहिए
- चैतन्य महाप्रभु
------
धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः धन्या च वसुधा देवी यत्र स्याद गुरुभक्तता
हे पार्वती ! जिसके अन्दर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसका पिता धन्य है, उसका कुल गोत्र / वंश धन्य है, उसके वंश में, जन्म लेनेवाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है
- भगवान शिवजी

Thursday, June 05, 2008

The Company of a Saint Destroys Myriads of Sins
An old deaf man regularly attended the satsanga of a saint. He suffered from neural deafness. He was as deaf as a post and couldn't hear even a single word. Somebody informed the saint, “Babaji! That old man sitting there is totally deaf even though he occasionally laughs in the course of the satsanga.”
Deaf people laugh twice – first, when all laugh in the course of satsanga and the second, when they figure out what might have transpired.
Babaji said, “Why does he come to satsanga if he is deaf? He comes every day and is always right on time. He keeps sitting for hours. He is not even among those who slip away in the middle of satsanga.”
Babaji thought, 'If he is deaf and cannot listen; how can he enjoy, and without enjoyment he should have left; but he stays put all the while!'
Babaji called the old man near and said in a loud voice into the old man's ears, “Can you listen to the satsanga?”
The old man said, “What did you say, Babaji?”
Babaji raised the loudness of his voice further and said, “Do you hear me?”
“Where do you want me to go?”
Babaji realized that he was totally deaf. He took a paper and pen from the attendant and queried the old man in writing.
The old man said, “My hearing is completely impaired. I cannot hear a word.”
The dialogue continued through the medium of written words.
“Then, why do you come to satsanga?”
“Babaji! I can not hear but I do know that God-Realized one's get absorbed in the Supreme Self before speaking. When a worldly man speaks, his words originate from the mind and the intellect; but the words of a Knower of the Supreme Brahman originate from the Atman. Of course, I cannot listen to your ambrosial words, but their pious vibrations do touch my persona. Secondly, I also earn the merit of sitting amidst the holy souls who come to listen to your nectarine precepts.”
Babaji realized that the old man was endowed with great wisdom. He said, “You may laugh twice, you are allowed to do so, but I am surprised to note that you come to satsanga right on time and take a seat in the front row; why is it so?”
“I am the eldest member of my family. The younger ones tend to follow in the footsteps of the elders. As I come to satsanga, my elder son too has started coming here. Previously, I even resorted to some tricks to bring him to the satsanga. I brought him here and he in turn brought his wife. The wife brought the children. Slowly the entire family has started coming to satsanga. The whole family is inclined to attend the satsanga.”
Never mind if the discourse on Brahman, or the satsanga of Self-Knowledge is not understood. Even if one is not able to hear, simply attending it earns one so much religious merit that sins and afflictions of his countless births are destroyed. One's entire family is also benefitted. Now, can there be any doubt that he who listens to it with rapt attention and reverence then reflects and contemplates on it constantly, will attain the Final Salvation?

Saturday, April 26, 2008

हरि ॐ .....
पूज्य श्री बापू जी के
६८ वें अवतरण दिवस की
सभी भक्तों को
खूब - खूब बधाईयाँ ।

Monday, April 21, 2008

अवतरण दिवस काव्य

करो संकल्प कुछ बढ़ कर , घड़ी यह आज आई है
मुबारक जन्म दिन तुमको , बधाई है - बधाई है

बधाई है तुमने स्वार्थ सुख को व्यर्थ समझा है
बधाई है कि तुमने जिन्दगी का अर्थ समझा है
लगे तुम मानने परमार्थ ही सच्ची कमाई है

बधाई है कि पहनी तुमने, सदगुण की सुमन माला
बधाई है कि तुमने महाकाल को ही है पहचाना
ये सुरभि सत्कर्म की आदत तुममे सदा समाई है

हटाई है कि तुमने दंभ ईर्ष्या द्वेष जीवन से
बधाई है कि ह्रदय में प्यार अनंत रखने को
बदलता है जगत ये बात जग को नित्य सिखाई है

बधाई है कि तुमने व्रत लिया है लोक मंगल का
बधाई है कि समझा है लक्ष्य जीवन के हर पल का
करो "शुभ" लक्ष्य जीवन का घड़ी यह आज आई है
करो संकल्प कुछ बढ़ कर घड़ी यह आज आई है

नारायण हरि
साँई तेरी शान निराली
शान निराली साँई तेरी शान निराली
तीन लोक की मेरे दाता करे रखवाली

कैसे - कैसे अनुभव अपने दुनिया को बतलायें
महिमा तेरी गा पायें वो शब्द कहाँ से लायें
तेरे नाम की ज्योत से है -२ दुनिया उजियाली ,
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

मुख मंडल पर आभा ऐसे जैसे सूरज चमके
एक झलक से छंट जाते हैं काले बदल गम के
भर देते हैं झोली उसकी -२ जो भी आता खाली
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

ब्रह्मज्ञान का दिया जलाकर जग उजियारा करते
सत्संग रुपी गंगाजल से सबको निर्मल करते
हर दर पर ना मस्तक टेकें -२ हम बापू के सवाली
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

संत शरण जो जन पड़े वो जन उद्धरणहार
संत की निंदा नानका बहुरि - बहुरि अवतार
सत्संग रुपी "शुभ" अमृत की -२ भर-भर देते प्याली
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

मैं मेरी के फंद हटाकर प्रभु से नाता जोड़ते
सुनकर के फरियाद भगत की नंगे पैरों दौड़ते
हमने पाकर शरण गुरु की -२ किस्मत अपनी जगा ली
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

Thursday, April 17, 2008

सद् गुणों की खान : श्री हनुमान जी
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
एक दिन भगवान श्री राम चंद्र जी और भगवती सीता जी झूले पर विराजमान थे । हनुमान जी आए और झूला झुलाने लगे । सीता जी ने कहा : "हनुमान ! पानी ... " रामजी ने कहा : "झूला चलाओ ." हनुमान जी झूले की रस्सी हाथ में लिए हुए पानी लेने गए ; झूला भी झूल रहा है और पानी भी ले आए ।
इस तरह हनुमानजी पूरी कुशलता से कर्म करते । कार्य की सफलता का सामर्थ्य कहाँ है , यह जानते हैं हनुमानजी । वे विश्रांति पाना जानते हैं । हनुमान जी को न परिणाम का भय है , न कर्मफल के भोग की कामना है, न लापरवाही है और न पलायनवादिता है ।

Tuesday, April 15, 2008


अवतरण दिवस भजन

हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे
गुरूजी हमारे , भक्तों के दुलारे
हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे

देखो मेरे गुरुवर की शान निराली , सत्संग की भर -भर देते प्याली
किया भक्तों का उद्धार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...

कैसा मंगल दिवस है आया , भक्तों ने बड़ी धूम से मनाया
कीर्तन की बहती बयार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...

जन्म से पहले सौदागर आया , सुंदर सा एक झूला भी लाया
हुआ धरती पर अवतार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...

ज्ञान गगन के सूर्य हैं बापू , शील शांत माधुर्य हैं बापू
सोलह कला के अवतार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...

"शुभ" जगत में आनंद छाया , मंगलाचरण सारे विश्व में गाया
कलिकाल में तारणहार गुरुजी हमारे , हुए अवतरित हैं आज गुरूजी हमारे ...


रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

Friday, April 11, 2008

वारी जाऊँ बापू जी


पिता थाऊमल के घर जन्मे -२ , तेरी जय हो मेह्गिबा के लाल
मैं वारी जाऊँ बापू जी ....
मैं वारी जाऊँ बापू जी , बलिहारी जाऊँ बापू जी

मोटेरा तेरा धाम है -२ , तेरे भक्त आवे दरबार
मैं वारी जाऊँ बापू जी ....

भक्तो के तुम कष्ट मिटते -२ , तेरी महिमा अपरम्पार
मैं वारी जाऊँ बापू जी ....

भक्त जो नाम दान हैं लेते -२ , वो तर जावें भव पार
मैं वारी जाऊँ बापू जी ....

आप तो बापू ज्ञान बांटते -२ , रहे भरा ज्ञान भंडार
मैं वारी जाऊँ बापू जी ....

ध्यान योग में ख़ुद को तपाया -२ , बने आसुमल से आसाराम
मैं वारी जाऊँ बापू जी ....

नाथ सुनाऊँ अनुभव अपना -२ , हो गया हरि से प्यार
मैं वारी जाऊँ बापू जी ....

हम भी बापू बालक तेरे -२ , "शुभ" चरणों में पावे वास
मैं वारी जाऊँ बापू जी ....

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

Wednesday, April 09, 2008

हरि ॐ
अहमदाबाद चेटीचंड शिविर (अप्रैल २००८) के मुख्य बिन्दु :

1. अनित्य में मन नहीं लगाकर नित्य की और बढ़ना शुरू करना चाहिए । समय तेज़ी से निकल रहा है ।
2. रोज संध्या का समय ६५ सेकंड के लिए आन्तरिक कुम्भक और ४० सेकंड के लिए वाह्य कुम्भक पक्का करो । ऐसे ७ प्राणायाम करें ।

3. गहरी श्वास अन्दर लेते समय सोचे की ईश्वरीय चैतन्य को अन्दर ले रहे है .... फिर श्वास रोके तो सोचें कि मैं प्रभु का और प्रभु मेरे, बस ...

और श्वास बाहर निकालते समय सोचें कि सारी पुरानी बातें और सारे निगेटिव विचार बाहर निकल रहे हैं . ऐसे रोजाना प्रयोग करें और ॐ कि धुन में ध्यान में बैठ जायें । ऐसा ४० दिन करें बहुत आध्यात्मिक उन्नति होगी।

4. पेट ख़राब रहता हो तो बाहरी कुम्भक में त्रिबंध लगाकर बैठकर पेट को अंदर-बाहर करिये और मन में रं रं रं जप करिये।

5. जो भी प्राणायाम करें उसे त्रिबंध लगाकर ही करें ।

6. श्वासों श्वास का ध्यान अनिवार्य ।

7. शिशंक आसन में रोज़ बैठना है । २ मिनट बडों के लिए और ३ मिनट स्टूडेंट्स के लिए । वज्र आसन में बैठकर जब सिर को ज़मीन पर लगाते हैं उसे "शिशंक" आसन कहते हैं ।

ध्यान दें : जब बाहरी कुम्भक करें तब वज्र आसन में बैठकर करें ।

8. इन दिनों बिना नमक के खाना सेहत के लिए अच्छा है ।

9. इन दिनों जप बढ़ा दे जब तक नवरात्र हैं ।

10. आंवला रोज़ खाने से आंते शुद्ध होती है । इन दिनों आंवला खाइए ।

11.श्रद्धा का जीवन में बहुत लाभ है । ये विश्व श्रद्धा से चल रहा है न की किसी और से । श्रद्धा बढाओ और भगवान में प्रीती ।

12. रोज़ सुबह उठकर थोडी देर भगवान से बातें करें और रात को सोने से पहले भी । पक्का नियम बना लें ।

शिविर में पधारे एक साधक भाई के सहयोग से संकलित ।

Tuesday, April 08, 2008

हनुमानचालीसा
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
श्री राम जय राम जय जय राम ॥

Thursday, April 03, 2008

हे विद्यार्थी ! सफलता के ये आठ स्वर्णिम सूत्र तुझे महान बना देंगे ।
--परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू
--१--
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविंद: प्रभाते करदर्शनम् ॥
हर रोज प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठना, ईश्वर का ध्यान और 'कर दर्शन' करके बिस्तर छोड़ना तथा सूर्योदय से पूर्व स्नान करना ।

--२--
अपनी सुषुप्त शक्तियाँ जगाने एवं एकाग्रता के विकास के लिए नियमित रूप से गुरुमंत्र का जप , ईश्वर का ध्यान और त्राटक करना ।

--३--
बुद्धि शक्ति के विकास एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हर रोज प्रातः सूर्य को अर्घ्य देना , सूर्य नमस्कार एवं आसन करना ।

--४--
स्मरण शक्ति के विकास के लिए नियमित रूप से भ्रामरी प्राणायाम करना एवं तुलसी के ५-७ पत्ते खाकर एक गिलास पानी पीना ।

--५--
माता -पिता एवं गुरुजनों को प्रणाम करना । इससे जीवन में आयु, विद्या, यश, व बल की वृद्धि होती है ।

--६--
महान बनने का दृढ़ संकल्प करना तथा उसे हर रोज दोहराना, ख़राब संगति एवं व्यसनों का दृढ़तापूर्वक त्याग कर अच्छे मित्रों की संगति करना तथा चुस्तता से ब्रह्मचर्य का पालन करना ।

--७--
समय का सदुपयोग करना, एकाग्रता से विद्या-अध्ययन करना और मिले हुए ग्रहकार्य को हर रोज नियमित रूप से पूरा करना ।

--८--
हर रोज सोने से पूर्व पूरे दिन की परिचर्या का सिंहावलोकन करना और गलतियों को फिर न दोहराने का संकल्प करना, तत्पश्चात ईश्वर का ध्यान करते हुए सोना

Wednesday, March 26, 2008

- : साखियाँ : -

बन जाओ चाहे सूरमा , बनो या मालामाल ।
सतगुरु भक्ति नही दिल में , तो सबसे बड़े कंगाल ॥

मधु जैसे हैं मधुर वो , चित्त है बहुत विशाल ।
दया धर्म की मूर्ति वो , मेरे सतगुरु दीन दयाल ॥

हम साधक जिन्हें पूजते , वो सतगुरु आसाराम ।
नाम रटन से जिनके , बनते बिगड़े काम ॥

गुरुदेव की छाया में , जीवन वृक्ष बढे ।
संस्कारों के फूल -फल , श्री गुरु चरणों में चढ़े ॥

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

५ मंत्रों की आहुति मन ही मन करें

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

पूज्य बापू जी ने Sony TV पर सत्संग में भगवान को मन से प्रार्थना करते हुए मन ही मन निम्न लिखित पाँच (५) मंत्रों की आहुतियाँ देने के लिए कहा है :
1। Om Avidyaam Juhomi Svaha

अर्थ : हे परमात्मा ! हम अपनी अविद्या को , अज्ञान को , आपके ज्ञान में स्वाहा करते हैं ।
2। Om Asmita Juhomi Svaha
अर्थ : अपने शरीर से जुड़ कर हमने जो मान्यताएं पकड़ रखी हैं , धन की , पद की , आदि उन सब को हम स्वाहा करते हैं ।
3। Om Raagam Juhomi Svaha
अर्थ : जिसमें राग होता है उसके दुर्गुण नहीं दिखते , और जिसमें द्वेष होता है उसके गुण नहीं दिखते । हम किसी भी व्यक्ति , वस्तु अथवा परिस्थिति से राग न करें ; राग को हम स्वाहा करते हैं ।
4। Om Dvesham Juhomi Svaha
अर्थ : किसी भी व्यक्ति , वस्तु अथवा परिस्थिति से द्वेष न करें ; द्वेष को भी हम स्वाहा करते हैं ।
5। Om Abhinivesham Juhomi Svaha
अर्थ : मृत्यु का भय निकाल दें ; यह शरीर मैं हूँ और मैं मर जाऊंगा इस दुर्बुद्धि का मैं त्याग करता हूँ ; जो शरीर मरता है वह मैं अभी से नहीं हूँ ; जो शरीर के मरने के बाद भी रहता है , वह मैं अभी से हूँ ।

हरि ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

Friday, March 14, 2008

ॐ -:होली का भजन :-ॐ

होली का उडे गुलाल -गुलाल , बापू जी तोरे अंगना में
बापू जी तोरे अंगना में, साँईं जी तोरे अंगना में
होली का उडे गुलाल -गुलाल , बापू जी तोरे अंगना में

त्यौहार होली का आया है भक्तों ने मंगल गाया है -२
सब नाचे दे-दे ताल हो ताल , बापू जी तोरे अंगना में
होली का उडे गुलाल -गुलाल , बापू जी तोरे अंगना में

पिचकारी प्रेम की रंग भरी , बापू ने ऐसी दया करी
मिटा जनम-मरण जंजाल - जंजाल , बापू जी तोरे अंगना में
होली का उडे गुलाल -गुलाल , बापू जी तोरे अंगना में

श्रद्धा के सुमन चढा दे हम , बापू को गुलाल लगा दें हम
"शुभ" होली करें हर साल - हर साल , बापू जी तोरे अंगना में
होली का उडे गुलाल -गुलाल , बापू जी तोरे अंगना में

सतगुरु शरण में आ जाओ , सुख शान्ति वैभव पा जाओ
हो जाओ मालामाल - मालामाल , बापू जी तोरे अंगना में
होली का उडे गुलाल -गुलाल , बापू जी तोरे अंगना में


रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

Saturday, March 08, 2008


जन्मदिवस कैसे मनाये ?

Tuesday, March 04, 2008

शिव भजन
ॐ नमः शिवाय ॥ ॐ नमः शिवाय ॥

देवाधिदेव हे महादेव .... देवाधिदेव हे महादेव ....
हमने मन मन्दिर सजाया ...., आकर तो देख - आकर तो देख
देवाधिदेव हे महादेव .........

तीनों लोक रहते तेरे चरणों में देवा , हमको भी दे दो नाथ चरणों की सेवा
हम भी तर जायें बालक तेरे ..... भव सिंधु से - भव सिंधु से
देवाधिदेव हे महादेव .........

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"
९९९०३४८६६४
महाशिवरात्रि पर्व की मंगल कामनाएं
*Om Namah shivay *
06 - March - 2008
Wishing you prosperous the great night of Lord Shiva

Mahashivaratri Festival or the ‘The Night of Shiva’ is celebrated with devotion and religious fervor in honor of Lord Shiva, one of the deities of Hindu Trinity. Shivaratri falls on the moonless 14th night of the new moon in the Hindu month of Phalgun, which corresponds to the month of February - March in English Calendar. Celebrating the festival of Shivaratri devotees observe day and night fast and perform ritual worship of Shiva Lingam to appease Lord Shiva.

Merits of Shivaratri Puja According to Shiva Purana, sincere worship of Lord Shiva yields merits including spiritual growth for the devotees. It also provides extensive details on the right way to perform Shivratri Puja. Shiva Purana further says that performing abhisheka of Shiva Linga with six different dravyas including milk, yoghurt, honey, ghee, sugar and water while chanting Sri Rudram, Chamakam and Dasa Shanthi pleases Lord Shiva the most.

According to the mythology, each of these dravya used in the abhisheka blesses a unique quality:
Milk is for the blessing of purity and piousness.
Yogurt is for prosperity and progeny.
Honey is for sweet speech.
Ghee is for victory.
Sugar is for happiness.
Water is for purity.

Besides, worship of Lord Shiva on Shivratri is also considered to be extremely beneficial for women. While, married women pray to Shiva for the well being of their husbands and sons, unmarried women pray for a husband like Shiva, who is considered to be the ideal husband.


Lord Shiva appears in a meditating but ever-happy posture. He has matted hair which holds the flowing Ganges river and a crescent moon, a serpent coiled around his neck, a trident (trishul) in his one hand and ashes all over his body. The Lord's attributes represent his victory over the demonic activity, and calmness of human nature. He is known as the "giver" god. His vehicle is a bull (symbol of happiness and strength) named Nandi. Shiva-Linga, a sign of the Lord, is adored instead of him. Shiva temples have Shiva-Linga as the main deity.
Maha Shivaratri is celebrated throughout the country; it is particularly popular in Uttar Pradesh. Maha Shivratri falls on the I3th (or I4th) day of the dark half of 'Phalgun' (February-March). The name means "the night of Shiva". The ceremonies take place chiefly at night. This is a festival observed in honour of Lord Shiva and it is believed that on this day Lord Shiva was married to Parvati.
On this festival people worship 'Shiva - the Destroyer'. This night marks the night when Lord Shiva danced the 'Tandav'. In Andhra Pradesh, pilgrims throng the Sri Kalahasteshwara Temple at Kalahasti and the Bharamarambha Malikarjunaswamy Temple at Srisailam.
Shivji is called 'Bhola' (innocent, kind hearted, easily pleased) because it is believed that He is easily pleased and grants boons instantly (hence he is called Ashutosh).

Thursday, February 28, 2008

प्यारा बापू नाम
~~~~~~~~~~~
कितना शुभ प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ।
श्री आसाराम नाम को , पूजे है जग सारा ॥

लीला तुम्हारी अद्भुत न्यारी , कैसे - कैसे खेल हैं ?
रूप मनुज का लेकर तुमने , किया ब्रह्म से मेल है
साँई लीलाशाह के नाम का , लेकर बापू सहारा
कितना शुभ प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ............

जन्म से पहले एक सौदागर , सुंदर झूला लाया
उतरेगा नक्षत्र अवनी पर , थाऊमल को बताया
माँ मेंहगीबा की कोख को , धन्य कहे जग सारा
कितना शुभ प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ............

नाम रतन से जिनके केवल , बनते बिगड़े काम हैं
योगलीला श्री आसारामायण , में पाते विश्राम हैं
पानी हो मुक्ति , ले लो तुम भी सहारा
कितना "शुभ" प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ............

"शुभ" चरनन में प्रीत बढे कुछ , ऐसा करो उपाय
ज्ञान बढे और घटे अविद्या , प्रभु प्रेम हो जाए
मोदीनगर में बापू , दर्शन मिले दोबारा
कितना "शुभ" प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ............

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

Wednesday, February 27, 2008

श्री आसारामायण अनुष्ठान विधि
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जहाँ पर अनुष्ठान करना हो, वहाँ ईशान कोण ( पूर्व व उत्तर के बीच की दिशा) में तुलसी का पौधा रखें । पाँच चीजों (गोमूत्र , हल्दी, कुमकुम, गंगाजल, शुद्ध इत्र या शुद्ध गुलाबजल) से पूर्व या उत्तर की दीवार पर समान लम्बाई - चौडाई का स्वस्तिक चिन्ह ( ) बनाये तथा उसके बाजू में पूज्य बापू जी की तस्वीर रख दें। फिर जमीन पर सफ़ेद या केसरी रंग का नया , पतला कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर गेहूँ के दानों से स्वस्तिक बना कर उस पर पानी का लोटा रख दें । लोटे के ऊपरी भाग में आम के पत्ते रखें व उन पर नारियल रख दें ।
उसके बाद तिलक करके ' ॐ गं गणपतये नमः ' मंत्र बोलते हुए , जिस उद्देश्य से अनुष्ठान करना है उसका संकल्प करें । फिर श्वास भरकर रोकें और महा मृत्युंजय मंत्र या गायत्री मंत्र का तीन बार जप करें तथा मन में संकल्प दोहराएँ कि 'मेरा अमुक कार्य अवश्य पूर्ण होगा ।' ऐसा तीन बार करें । अनुष्ठान जितने भि इदन में पूर्ण करना हो उनमें प्रत्येक सत्र (बैठक) में यह मंत्र व संकल्प दोहराना है । प्रतिदिन निश्चित संख्या में पाठ करें । अनुष्ठान के समय धुप करें तथा दीपक जलता रहे ।
अनुष्ठान की समाप्ति पर लोटे का जल तुलसी की जड़ में साल दें । गेहूँ के दाने पक्षियों के डालें , नारियल प्रसाद रूप में बाँट दें या बहती जल में प्रवाहित कर दें । गुरुमंत्र के जप से १०८ आहुतियाँ दे कर हवन कर लें तथा एक या तीन अथवा पाँच -सात कन्याओं को भोजन करायें । दृढ श्रद्धा -विश्वास , संयम तथा तत्परता पूर्वक इस विधि से अनुष्ठान करने वालो की मनोकामना पूर्ण होने में मदद मिलती है ।

(स्वामी सुरेशानंद जी के प्रवचन से ) - लोक कल्याण सेतु : अंक १२६ । १६ दिसम्बर २००७ से १५ जनवरी २००८

Tuesday, February 26, 2008

ॐ -: हे प्रभु आनंद दाता [प्रार्थना] :- ॐ

हे प्रभु आनंद दाता, ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

निंदा किसीकी हम किसीसे भूल कर भी न करें
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूल कर भी न करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में
हे प्रभु आनंद दाता.................................

मातृभूमि मातृसेवा हो अधिक प्यारी हमें
देश की सेवा करें निज देश हितकारी बनें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा ॐ
प्रेम से हम दुःखीजनों की नित्य सेवा करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

Friday, February 15, 2008

गीता की सर्व हितकारी विद्याएँ
(पूज्य बापू जी के सत्संग -प्रवचन से)

'गीता' में मुख्य रूप से बारह विद्याएँ हैं :

१. शोक-निवृत्ति की विद्या
२. कर्तव्य कर्म करने की विद्या
३. त्याग करने की विद्या
४. भोजन करने की विद्या
५. पाप न लगने की विद्या
६. विषय-सेवन की विद्या
७. भगवद अर्पण की विद्या
८. दान देने की विद्या
९. यज्ञ विद्या
१०. पूजन विद्या
११. समता लाने की विद्या
१२. कर्मों को सत बनाने की विद्या

आश्रम द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'ऋषि प्रसाद' के अंक १७६ , अगस्त २००७ से संकलित
विस्तार आलेख के लिए कृपया उपरोक्त अंक पढ़ें .

Wednesday, February 13, 2008

---: १४ फरवरी २००८ :---

इस वर्ष १४ फरवरी को भारतीय संस्कृति की महत्ता को समझाने वाले ३ भिन्न उत्सव एक साथ हमें प्राप्त हो रहे हैं । पूज्य गुरुदेव ने भिन्न - भिन्न स्थानों पर आयोजित हुए सत्संग कार्यक्रमों में हमें हमारी संस्कृति के और निकट जाने की राह समझाई है । धन्य - धन्य हैं हम बालक / साधक जिन्हें ईश्वर साक्षात् नर रूप में मिले हैं ।

१) मातृ - पितृ पूजन दिवस

२) भीष्म तर्पण दिवस

३) माघ - शुक्ल अष्टमी

प्रत्येक त्यौहार का अपना - अपना महत्त्व है । संक्षेप में जानते है :....

मातृ - पितृ पूजन दिवस :- अपनी भारतीय संस्कृति बालकों को छोटी उम्र में ही बड़ी ऊँचाईयों पर ले जाना चाहती है। इसमें सरल छोटे-छोटे सूत्रों द्वारा ऊँचा, कल्याणकारी ज्ञान बच्चों के हृदय में बैठाने की सुन्दर व्यवस्था है।
मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। माता-पिता एवं गुरू हमारे हितैषी है, अतः हम उनका आदर तो करें ही, साथ ही साथ उनमें भगवान के दर्शन कर उन्हें प्रणाम करें, उनका पूजन करें। आज्ञापालन के लिए आदरभाव पर्याप्त है परन्तु उसमें प्रेम की मिठास लाने के लिए पूज्यभाव आवश्यक है। पूज्यभाव से आज्ञापालन बंधनरूप न बनकर पूजारूप पवित्र, रसमय एवं सहज कर्म हो जाएगा।
पानी को ऊपर चढ़ाना हो तो बल लगाना पड़ता है। लिफ्ट से कुछ ऊपर ले जाना हो तो ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। पानी को भाप बनकर ऊपर उठना हो तो ताप सहना पड़ता है। गुल्ली को ऊपर उठने के लिए डंडा सहना पड़ता है। परन्तु प्यारे विद्यार्थियो! कैसी अनोखी है अपनी भारतीय सनातन संस्कृति कि जिसके ऋषियों महापुरूषों ने इस सूत्र द्वारा जीवन उन्नति को एक सहज, आनंददायक खेल बना दिया।
इस सूत्र को जिन्होंने भी अपना बना लिया वे खुद आदरणीय बन गये, पूजनीय बन गये। भगवान श्रीरामजी ने माता-पिता व गुरू को देव मानकर उनके आदर पूजन की ऐसी मर्यादा स्थापित की कि आज भी मर्यादापुरूषोत्तम श्रीरामजी की जय कह कर उनकी यशोगाथा गाय़ी जाती है। भगवान श्री कृष्ण ने नंदनंदन, यशोदानंदन बनकर नंद-घर में आनंद की वर्षा की, उनकी प्रसन्नता प्राप्त की तथा गुरू सांदीपनी के आश्रम में रहकर उनकी खूब प्रेम एवं निष्ठापूर्वक सेवा की। उन्होंने युधिष्ठिर महाराज के राजसूय यज्ञ में उपस्थित गुरूजनों, संत-महापुरूषों एवं ब्राह्मणों के चरण पखारने की सेवा भी अपने जिम्मे ली थी। उनकी ऐसी कर्म-कुशलता ने उन्हें कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण के रूप में जन-जन के दिलों में पूजनीय स्थान दिला दिया। मातृ-पितृ एवं गुरू भक्ति की पावन माला में भगवान गणेष जी, पितामह भीष्म, श्रवणकुमार, पुण्डलिक, आरूणि, उपमन्यु, तोटकाचार्य आदि कई सुरभित पुष्प हैं।
तोटक नाम का आद्य शंकराचार्य जी का शिष्य, जिसे अन्य शिष्य अज्ञानी, मूर्ख कहते थे, उसने आचार्यदेवो भव सूत्र को दृढ़ता से पकड़ लिया। परिणाम सभी जानते हैं कि सदगुरू की कृपा से उसे बिना पढ़े ही सभी शास्त्रों का ज्ञान हो गया और वे तोटकाचार्य के रूप में विख्यात व सम्मानित हुआ। वर्तमान युग का एक बालक बचपन में देर रात तक अपने पिताश्री के चरण दबाता था। उसके पिता जी उसे बार-बार कहते - बेटा! अब सो जाओ। बहुत रात हो गयी है। फिर भी वह प्रेम पूर्वक आग्रह करते हुए सेवा में लगा रहता था। उसके पूज्य पिता अपने पुत्र की अथक सेवा से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद देते -
पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम। लोगों के तुमसे सदा, पूरण होंगे काम।

अपनी माताश्री की भी उसने उनके जीवन के आखिरी क्षण तक खूब सेवा की।
य़ुवावस्था प्राप्त होने पर उस बालक भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की भांति गुरू के श्रीचरणों में खूब आदर प्रेम रखते हुए सेवा तपोमय जीवन बिताया। गुरूद्वार पर सहे वे कसौटी-दुःख उसके लिए आखिर परम सुख के दाता साबित हुए। आज वही बालक महान संत के रूप में विश्ववंदनीय होकर करोड़ों-करोड़ों लोगों के द्वारा पूजित हो रहा है। ये महापुरूष अपने सत्संग में यदा-कदा अपने गुरूद्वार के जीवन प्रसंगों का जिक्र करके कबीरजी का यह दोहा दोहराते हैं -
गुरू के सम्मुख जाये के सहे कसौटी दुःख। कह कबीर ता दुःख पर कोटि वारूँ सुख।।
सदगुरू जैसा परम हितैषी संसार में दूसरा कोई नहीं है। आचार्यदेवो भव, यह शास्त्र-वचन मात्र वचन नहीं है। यह सभी महापुरूषों का अपना अनुभव है।
मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। यह सूत्र इन महापुरूष के जीवन में मूर्तिमान बनकर प्रकाशित हो रहा है और इसी की फलसिद्धि है कि इनकी पूजनीया माताश्री व सदगुरूदेव - दोनों ने अंतिम क्षणों में अपना शीश अपने प्रिय पुत्र व शिष्य की गोद में रखना पसंद किया। खोजो तो उस बालक का नाम जिसने मातृ-पितृ-गुरू भक्ति की ऐसी पावन मिसाल कायम की।
आज के बालकों को इन उदाहरणों से मातृ-पितृ-गुरूभक्ति की शिक्षा लेकर माता-पिता एवं गुरू की प्रसन्नता प्राप्त करते हुए अपने जीवन को उन्नति के रास्ते ले जाना चाहिए।

भीष्म तर्पण दिवस एवं शुक्ल अष्टमी :- भीष्म जी को जल अर्पण करें और संतान की प्राप्ति की इच्छा करें तो तेजस्वी आत्मा आती है ऐसा 14 फरवरी है इस बार शुक्ल अष्टमी तिथि, धवल निबंध ग्रंथ के अनुसार इस तिथि को भीष्म जी का तर्पण दिवस भी है ब्रह्मचारी भीष्म जी का तर्पण करने से लड़के लड़कियाँ तेजस्वी हो सकते हैं

नारायण हरि

Wednesday, February 06, 2008

बापूजी का पावन सन्देश
प्रति वर्ष १४ फरवरी को मनाये मात्र - पितृ पूजन दिवस

कैसे मनाये मात्र - पितृ पूजन दिवस ?

इस दिवस बच्चे-बच्चियां माता - पिता को प्रणाम करे तथा माता - पिता अपने संतानों को प्रेम करे ! संतान अपने माता - पिता के गले लगे ! इससे वास्तविक प्रेम का विकास होगा ! बेटे बेटियाँ माता - पिता में ईश्वरीय अंश को देखे . बच्चे-बच्चियां माता - पिता का तिलक पुष्प आदि के द्वारा पूजन करे ! माता - पिता भी बच्चों को तिलक करे आशीर्वचन कहे !

बालक गणेश की पृथ्वी परिक्रमा , भक्त पुन्दालिक की मात्र - पितृ भक्ति , श्रवण कुमार की मात्र - पितृ भक्ति इन कथाओं का पठन करे अथवा कोई एक व्यक्ति कथा सुनाये और अन्य लोग श्रवण करे !

इस दिन बच्चे-बच्चियां पवित्र संकल्प करे : "मैं अपने माता - पिता और गुरुजनों का आदर करूँगा / करुँगी ! मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जाने वाली उनकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्त्यव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करुँगी / करूँगा ! नारायण नारायण नारायण , ॐ ॐ ॐ "

माता - पिता 'बाल संस्कार युवाधन सुरक्षा ' , 'तू गुलाब होकर महक ' , 'मधुर व्यवहार ' , इन पुस्तकों को अपने क्षमातानुरूप बांटे बंटवाये तथा तथा प्रतिदिन स्वयं पढ़ने का व बच्चों से पढ़ने का संकल्प लें !

मात - पिता प्रभु गुरु चरणों में प्रणवत बारम्बार , हम पर किया बड़ा उपकार ........
भूलो सभी को तुम मगर माँ - बाप को भूलना नही ........

Friday, February 01, 2008

संत वचन - अमृत वाणी

मन के चाल-चलन को सतत देखें मन बुरी बात में जाने लगे तो उसके पेट में ज्ञान का छुरा भोंक दें । चौकीदार जागता है तो चोर कभी चोरी नहीं कर सकता । आप सजाग होंगे तो मन भी बिल्कुल सीधा रहेगा ।

- परम पूज्य लीलाशाहजी महाराज
~~~~~~~~~~*~~~~~~~~~~
जो ज्ञानयुक्त सेवा करता है वहा अवश्य सफल होता है रोज सुबह नींद में से उठके प्रभु की प्रीति पाने का शुभ संकल्प करो, अपने स्वास्थ्य की समस्याओं का समाधान खोजो और निर्णय करो की दो को हँसाऊँगा, दो के आंसू पोछूँगा

- परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू
~~~~~~~~~~*~~~~~~~~~~

Wednesday, January 30, 2008

-: आश्रम द्वारा प्रकाशित सत्साहित्य से लिए कुछ अनमोल वचन :-

शराबी समझता है की मैं शराब पीता हूँ। वास्तव में शराब उसे पी लेती है। बीडी पीने वाले को बीडी पी लेती है। बीडी पीने से ६४ बीमारियों की नींव पड़ जाती है. सुबह को जो खाली पेट चाय पीते है उनका वीर्य कमजोर हो जाता है । ओज नष्ट हो जाता है।
हल्के खान पान और हल्के विचारो से भी बचना है । हल्के संग से भी बचना है। कोई आदमी गरीब है , उसका संग करना हल्का नहीं है । जो तुच्छ चीजे पाकर, भोगी जीवन जीकर अपने को भाग्यवान मानते है उनका संग हल्का संग है । एसे लोगो की बुद्धि तो हल्की है ही ऐसे लोगो को जो बड़ा मानता है उन पर ज्यादा दया आती है । जिसके पास अधिक सुविधा है वह बड़ा नहीं है। बड़ा आदमी तो वह है जो बिना सुविधा के भी आनंदित रह सकता है, प्रसन्न रह सकता है।
दिले तस्वीरे है यार जबकि गर्दन झुका ली और मुलाकात कर ली ।
(आश्रम की समता साम्राज्य पुस्तक से)

श्री रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे : किसी सुन्दर स्त्री पर नजर पड़ जाये तो उसमे माँ जगदम्बा के दर्शन करो । ऐसा विचार करो की यह अवश्य देवी का अवतार है , तभी तो इसमें इतना सौन्दर्य है। माँ प्रसन्न होकर इस रूप में दर्शन दे रही है , ऐसा समझकर सामने खड़ी स्त्री को मन ही मन ही मन प्रणाम करो . इससे तुम्हारे भीतर काम विकार नहीं उठ सकेगा। पराई स्त्री को माता के समान और पराए धन को मिटटी के धेले के समान जानो ।

(आश्रम की यौवन सुरक्षा पुस्तक से )

जैसे बीज की साधना वृक्ष होने के सिवाय और कुछ नहीं, उसी प्रकार जीव की साधना आत्मस्वरूप को जानने के सिवाय और कुछ नहीं। तुम्हारे जीवन में जितना संयम और वाणी में जितनी सच्चाई होगी, उनती ही तुम्हारी और तुम जिससे बात करते हो उसकी आद्यात्मिक उन्नति होगी। अपने दोषों को खोजो। जो अपने दोष देख सकता है , वह कभी न कभी उन दोषों को दूर करने के लिए भी प्रयत्नशील होगा ही। एसे मनुष्य की उन्नति निश्चित है ।

(आश्रम की अमृत के घूँट पुस्तक से )
इस सेवा में एक साधक भाई का पूर्ण सहयोग मिला । नारायण हरि

Tuesday, January 29, 2008

चेतना स्रोत : संत - महापुरुष वाणी

निर्भयता जीवन हैं, भय मृत्यु हैं उपनिषदों में बम की तरह आनेवाला शब्द 'निर्भयता' सारे अज्ञान-अन्धकार को मिटाता हैं भयभीत चित्त से ही सारे पाप होते हैं अतः निर्भय रहो ।

सदाचार निर्भयता की कुंजी है ।
~~~~~~~~~~~~~*~~~~~~~~~~~~~
- परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू


धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः
धन्या च वसुधा देवी यत्र स्याद गुरुभक्तता ॥


हे पार्वती ! जिसके अन्दर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसका पिता धन्य है, उसका वंश धन्य है, उसके वंश में, जन्म लेनेवाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है

~~~~~~~~~~~~~*~~~~~~~~~~~~~
- भगवान शिवजी


'गीता'

विवेकरूपी वृक्षों का एक अपूर्व बगीचा है यह सब सुखों की नींव है सिद्धान्त-रत्नों का भण्डार है नवरसरूपी अमृत से भरा हुआ समुद्र है खुला हुआ परम धाम है और सब विद्याओं की मूल भूमि है

~~~~~~~~~~~~~*~~~~~~~~~~~~~

- संत ज्ञानेश्वर महाराज


एक साधक भाई द्वारा संकलित । साधोवाद ....

Wednesday, January 23, 2008

पूज्य गुरुदेव ने महिलाओं की समस्याओं को घरेलु उपचारों से आसानी से ठीक होने की कुछ युक्तियाँ बताई ।

सदगुरुदेव ने महिलाओं कि तमाम समस्याओ के लिए ये उपाय बताया और जरा जरा बातो मे डरने की आवश्यकता नही और ऑपरेशन भी नही करे ऐसा भी कहा है..

लेडीज की प्रोब्लेम्स(मासिक धर्म कि समस्याये) के लिए उपाय:-

गुरुदेव ने कहा कि देवियों को मासिक धर्म कि प्रोब्लेम हो तो पैन किलर /इंजेक्शन न लें, बहुत नुकसान करते हैं…कोई भी स्त्रियों की गुप्त बिमारी हो, रात को पानी रख लो सवा लीटर, ताम्बे का बरतन हो तो ठीक है, नहीं तो किसी में, सवेरे मंजन कर के, ब्रश करने से फायदा नहीं होता, मंजन करना चाहिऐ, मैं (गुरुदेव) भी मंजन करता हूँ…मंजन करके तुलसी के ५ पत्ते खा लिए…लेकिन रविवार को तुलसी नहीं खाना, नहीं तोडना
५ पत्ते खा लिए और पानी पी लिया…वैसे तो सूरज उगने पर ही पानी पीना चाहिऐ, रात्री को पानी पीना जठरा मन्द करता है…रात्री को देर भोजन करना बिमारी लाता है॥और दिन में भोजन कर के सोना बिमारी लाएगा…यह बातें समझ लो तो आप निरोग रह सकते हो…तो वोह पानी पी लिया सवा लीटर, थोडा घूमे फिरे, ८ दिन के अन्दर कब्जियात की बिमारी, पेट साफ नहीं आता तो साफ आने लगेगा…मासिक में पीड़ा होती है तो पीड़ा मिट जाएगा, जादा/कम आता है तो ठीक हो जाएगा…नहीं आता है, संतान नहीं होती है…आने लगेगा, और संतान का मंत्र भी दे देंगे, संतान भी हो जायेगी…ऐसे लोग थे डॉक्टर बोलते थे संतान नहीं होगी, ऐसे लोगों के घर में अभी ३-३ संतानें खेल रही हैं…
स्रोत्र : पूज्य गुरुदेव के सत्संग से
नारायण हरि
-: दिल्ली जनवरी २००८ पूर्णिमा दर्शन सत्संग के अंश :-
पूज्य श्री बापू जी ने दिनांक २१ जनवरी २००८ को रामलीला मैदान , अजमेरी गेट , दिल्ली के सत्संग में धर्म की पाँच शाखाओं के बारे में विस्तार से बताया । उसके कुछ अंश :

bhagavan ne gita ke 3 re adhyay ka 35 va shlok

shreyanswadharmo viguna: pardharmatswanusthitat l
swadharme nidhanam shreya paradharmo bhayawaha: ll


dharm ki 5 shakhaye hoti hai …
1)swa-dharm
2)par dharm
3)aabhas dharm
4)upama dharm
5)chhal dharam

chhal dharm :- kuchh log dikhave ke liye, shradha nahi lekin aarati kar rahe ..patni kar rahi.. ” mai bhi kar raha hun maharaj “.. aap ko dandavat kiye.. “mai bhi samiti mey hun..” isko bolate chhal dharam..aise rushi parsad ki sewa be-imani se kare to isase nahi karo to achha hai ..jo imandar hai un ko aanand aayega.. rushi prasad ke members ki 16 tarikh ko baithak thi..mai nahi jata kabhi..lekin is baar socha chalo baith jate….to ek advocate bole ,” meri membership chhin li gayi hai, mera kuchh bhi aparadh nahi tha..aparadh naa ho aur phir bhi sewa nikal li gayi , aur wo bhi advocate ki…. to pata chala ki inhone membarship to nibhayi hai,lekin usaka paisa dusari jagah laga diye.. ye chhal-dharm ho gaya na advocate sahab ..usaka nam nahi leta..usaki badanami nahi karunga..

aabhas dharm :- makar sankranti ka ddan dena hai, ekadashi ka daan dena hai to apane hi ghar ke kaamwale ko , nokaro ko de diya …ekadashi ko , navaratri ko 12 kanya ko khana khilana hai to apane beti ki kanya rishtedaro ko bulaaya ye dharm aabhaas dharm hai ..jo dharm ka kewal aabhaas denewala hai isliye is ko “abhas dharm” kahate hai…

upama dharm :- bina dekhe , bina soche ..usane kiya to apana bhi karo..phir ye karane se kya phal hai ye bhi nahi sochate… dikhaavati.. ‘hum bade tapasvi hai, paidal nange pair jaate’.. jaise kayi log nange pair chalate, to apan bhi chale..pahala jamana tha..log nange pair paidal yatra karate..wo jamana alag tha..tub hariyali thi, to aalhad milata nange pair chalane , thakan bhi nahi lagati.. vinoba bhave bolate ki , “ham bhi upama dharm mey phisal gaye the.. parinam pairo ko phaphule..dambar ki sadak hoti hai ..aankhe kharab ho gayi.. “