********* SRIMAD BHAGVAD GITA (11.44 - 11.46) *********
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं- प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्।।44।।
अतएव हे प्रभो ! मैं शरीर को भलीभाँति चरणों में निवेदित कर, प्रणाम करके, स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिए प्रार्थना करता हूँ। हे देव ! पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रियतमा पत्नी के अपराध सहन करते हैं – वैसे ही आप भी मेरे अपराध सहन करने योग्य
हैं।(44)
Therefore, bowing down, prostrating my body, I crave Thy forgiveness, O adorable Lord! As a father forgives his son, a friend his (dear) friend, a lover his beloved, even so shouldst Thou forgive me, O God!
अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देवरूपं- प्रसीद देवेश जगन्निवास।।45।।
मैं पहले न देखे हुए आपके इस आश्चर्यमय रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है, इसलिए आप उस अपने चतुर्भुज विष्णुरूप को ही मुझे दिखलाइये ! हे देवेश ! हे जगन्निवास ! प्रसन्न होइये।(45)
I am delighted, having seen what has never been seen before; and yet my mind is distressed with fear. Show me that (previous) form only, O God! Have mercy, O God of gods! O abode of the universe!
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त- मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते।।46।।
मैं वैसे ही आपको मुकुट धारण किये हुए तथा गदा और चक्र हाथ में लिए हुए देखना चाहता हूँ, इसलिए हे विश्वस्वरूप ! हे सहस्रबाहो ! आप उसी चतुर्भुजरूप से प्रकट होइये।(46)
I desire to see Thee as before, crowned, bearing a mace, with the discus in hand, in Thy former form only, having four arms, O thousand-armed, Cosmic Form (Being)!
Param Pujya Sant Shri Asaramji, endearingly called 'Bapu', is a Self-Realized Saint from India. Pujya Bapuji preaches the existence of One Supreme Conscious in every human being; be it Hindu, Muslim, Jain, Christian, Sikh or anyone else. Bapuji represents a confluence of Bhakti Yoga, Gyan Yoga & Karma Yoga. This website is a humble attempt to spread the divine message of Pujya Bapuji.
Saturday, March 06, 2010
गुरु वचन :
ईश्वरीय शक्तियाँ तुम्हारे द्वारा काम करने को तत्पर हैं। तुम क्यों बेईमानी कर रहे हो ? क्यों अपेक्षाएँ कर रहे हो ? क्यों सिकुड़ रहे हो ? क्यों मन के गुलाम बन रहे हो ? मन की कल्पनाओं के पीछे भाग रहे हो ? मारो ॐकार की गदा...। अपेक्षाओं को चूर... चूर कर दो। वासनाओं को कुचल डालो। फिर देखो, क्या रहस्य खुलने लगते हैं !
होली यानी जो हो... ली.... कल तक जो होना था, वह हो लिया। आओ, आज एक नयी जिंदगी की शुरुआत करें। जो दीन-हीन हैं, शोषित है, उपेक्षित है, पीड़ित है, अशिक्षित है, समाज के उस अंतिम व्यक्ति को भी सहारा दें। जिंदगी का क्या भरोसा ! कुछ काम ऐसे कर चलो कि हजारों दिल दुआएँ देते रहें... चल पड़ो उस पथ पर, जिस पर चलकर कुछ दीवाने प्रह्लाद बन गये। करोगे न हिम्मत ! तो उठो और चल पतो उठो और चल पड। तो उठो और चल पड़ो प्रभुप्राप्ति, प्रभुसुख, प्रभुज्ञान, प्रभुआनंद प्राप्ति के पुनीत पथ पर ।
संसार के सुख पाने की इच्छा दोष ले आती है और आत्मसुख पाने की इच्छा सदगुण ले आती है। ऐसा कोई दुर्गुण नहीं जो संसार के भोग की इच्छा से पैदा न हो। व्यक्ति बुद्धिमान हो, लेकिन भोग की इच्छा उसमें दुर्गुण ले आयेगी। चाहे कितना भी बुद्धू हो, लेकिन ईश्वर प्राप्ति की इच्छा उसमें सदगुण ले आएगी।
नारायण .... नारायण
ईश्वरीय शक्तियाँ तुम्हारे द्वारा काम करने को तत्पर हैं। तुम क्यों बेईमानी कर रहे हो ? क्यों अपेक्षाएँ कर रहे हो ? क्यों सिकुड़ रहे हो ? क्यों मन के गुलाम बन रहे हो ? मन की कल्पनाओं के पीछे भाग रहे हो ? मारो ॐकार की गदा...। अपेक्षाओं को चूर... चूर कर दो। वासनाओं को कुचल डालो। फिर देखो, क्या रहस्य खुलने लगते हैं !
होली यानी जो हो... ली.... कल तक जो होना था, वह हो लिया। आओ, आज एक नयी जिंदगी की शुरुआत करें। जो दीन-हीन हैं, शोषित है, उपेक्षित है, पीड़ित है, अशिक्षित है, समाज के उस अंतिम व्यक्ति को भी सहारा दें। जिंदगी का क्या भरोसा ! कुछ काम ऐसे कर चलो कि हजारों दिल दुआएँ देते रहें... चल पड़ो उस पथ पर, जिस पर चलकर कुछ दीवाने प्रह्लाद बन गये। करोगे न हिम्मत ! तो उठो और चल पतो उठो और चल पड। तो उठो और चल पड़ो प्रभुप्राप्ति, प्रभुसुख, प्रभुज्ञान, प्रभुआनंद प्राप्ति के पुनीत पथ पर ।
संसार के सुख पाने की इच्छा दोष ले आती है और आत्मसुख पाने की इच्छा सदगुण ले आती है। ऐसा कोई दुर्गुण नहीं जो संसार के भोग की इच्छा से पैदा न हो। व्यक्ति बुद्धिमान हो, लेकिन भोग की इच्छा उसमें दुर्गुण ले आयेगी। चाहे कितना भी बुद्धू हो, लेकिन ईश्वर प्राप्ति की इच्छा उसमें सदगुण ले आएगी।
नारायण .... नारायण
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