Ravivari Saptami: 10 & 24 April 2011.
इन तिथियों पर जप/ध्यान करने का वैसा ही हजारों गुना फल होता है जैसा की सूर्य/चन्द्र ग्रहण में जप/ध्यान करने से होता हैl
घातक बीमारी दूर करने के लिए :
रविवार सप्तमी के दिन अगर कोई नमक मिर्च बिना का भोजन करे और सूर्य भगवान की पूजा करे , तो उस घटक बीमारियाँ दूर हो सकती हैं , अगर बीमार व्यक्ति न कर सकता हो तो कोई ओर बीमार व्यक्ति के लिए यह व्रत करे |
सूर्य पूजन विधि :
१) सूर्य भगवान को तिल के तेल का दिया जला कर दिखाएँ , आरती करें |
२) जल में थोड़े चावल ,शक्कर , गुड , लाल फूल या लाल कुमकुम मिला कर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें |
सूर्य अर्घ्य मंत्र :
1. ॐ मित्राय नमः।
2. ॐ रवये नमः।
3. ॐ सूर्याय नमः।
4. ॐ भानवे नमः।
5. ॐ खगाय नमः।
6. ॐ पूष्णे नमः।
7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
8. ॐ मरीचये नमः।
9. ॐ आदित्याय नमः।
10. ॐ सवित्रे नमः।
11. ॐ अकीय नमः।
12. ॐ भास्कराय नमः।
13. ॐ श्रीसवितृ-सूर्यनारायणाय नमः।
Param Pujya Sant Shri Asaramji, endearingly called 'Bapu', is a Self-Realized Saint from India. Pujya Bapuji preaches the existence of One Supreme Conscious in every human being; be it Hindu, Muslim, Jain, Christian, Sikh or anyone else. Bapuji represents a confluence of Bhakti Yoga, Gyan Yoga & Karma Yoga. This website is a humble attempt to spread the divine message of Pujya Bapuji.
Saturday, April 09, 2011
सत्संग सुनते सुनते एक एक क्षण अश्वमेध यज्ञ के पुण्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, सत्संग मुक्ति देता है। इतना ही नहीं, सत्संग हृदय में प्यार पैदा करता है। इतना ही नहीं, सत्संग श्रेष्ठ नागरिक बनाता है।
सत्संग जीवन्मुक्त होने का मार्ग बताता है। इतना ही नहीं, व्यवहार में उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने की मास्टर की सत्संग तुम्हारे हाथ में धर देता है। जब, वहाँ जिस कुँजी की जरूरत पड़े वह मिल जाया करती है। यह सब सत्संग की बलिहारी है।
वेदान्त केवल जंगलों में जाकर पकाने की विद्या नहीं है। यह तो तुम्हारे अपने घर के चूल्हे पर पकाने की विद्या है। .......... पूज्यपाद श्रीबापूजी
सत्संग जीवन्मुक्त होने का मार्ग बताता है। इतना ही नहीं, व्यवहार में उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने की मास्टर की सत्संग तुम्हारे हाथ में धर देता है। जब, वहाँ जिस कुँजी की जरूरत पड़े वह मिल जाया करती है। यह सब सत्संग की बलिहारी है।
वेदान्त केवल जंगलों में जाकर पकाने की विद्या नहीं है। यह तो तुम्हारे अपने घर के चूल्हे पर पकाने की विद्या है। .......... पूज्यपाद श्रीबापूजी
विनम्रता जो दूसरों की सेवा करता है, दूसरों के अनुकूल होता है, वह दूसरों का जितना हित करता है उसकी अपेक्षा उसका खुद का हित ज्यादा होता है।अपने से जो उम्र से बड़े हों, ज्ञान में बड़े हो, तप में बड़े हों, उनका आदर करना चाहिए। जिस मनुष्य के साथ बात करते हो वह मनुष्य कौन है यह जानकर बात करो तो आप व्यवहार-कुशल कहलाओगे। किसी को पत्र लिखते हो तो यदि अपने से बड़े हों तो 'श्री' संबोधन करके लिखो। संबोधन करने से सुवाक्यों की रचना से शिष्टता बढ़ती है। किसी से बात करो तो संबोधन करके बात करो। जो तुकारे से बात करता है वह अशिष्ट कहलाता है। शिष्टतापूर्वक बात करने से अपनी इज्जत बढ़ती है। जिसके जीवन में व्यवहार-कुशलता है, वह सभी क्षेत्रों में सफल होता है। जिसमें विनम्रता है, वही सब कुछ सीख सकता है। विनम्रता विद्या बढ़ाती है। जिसके जीवन में विनम्रता नहीं है, समझो उसके सब काम अधूरे रह गये और जो समझता है कि मैं सब कुछ जानता हूँ वह वास्तव में कुछ नहीं जानता।
सज्जनता और दुर्जनता, ये अन्तःकरण के धर्म हैं। इससे भी पार अपने सोऽहं स्वरूप में जग जाओ। साधक का यह अभ्यास दृढ़ नहीं है, आत्म-अभ्यास को भूल जाता है तो संसार खोपड़ी में चढ़ बैठता है। चिन्ता दिल-दिमाग का कब्जा ले लेती है। भय पीठ पर सवार हो जाता है। काम का कीड़ा भीतर घुस जाता है और बुद्धि को कुरेदने लगता है। आत्म-अभ्यास कमजोर है इसीलिए सारी मुसीबतें आ जाती हैं। आत्म-अभ्यास दृढ़ है तो मुसीबतें दूर भागेगी। जहाँ पोल होती है वहीं बजता है।.......... पूज्यपाद श्रीबापूजी
Subscribe to:
Posts (Atom)