हरि ॐ...
भगवान को हम क्यों मानें? गुरु को हम क्यों मानें?
किसी न किसी रूप से, किसी न किसी से कुछ न कुछ अनुचित या अपराध हो ही जाता है; चाहे कितना भी धर्मात्मा हो, कितना भी अधिकारी समझदार हो, फिर भी कहीं न कहीं गड़बड़ हो ही जाती है; इसलिए हम भगवान को मानते हैं ताकि हमारी गलती क्षम्य हो जाए;
मेटत कठिन कुअंक भाल के;
भाग्य के कु-अंक मिट जाएँ, भाग्य के कु-अंक मिटाने के लिए भगवान की भक्ति है, भगवान की प्रीती पाने के लिए भगवान की भक्ति है, भगवान में अपना अहम् मिला दो तो भगवान का सौंदर्य, भगवान का सामर्थ्य, और भगवान का रस सहज में प्राप्त हो जाए, इसलिए भगवान की भक्ति की हमें आवश्यकता है