ॐ - : श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित मधुराष्टकम : - ॐ
श्री सुरेशानंद जी द्वारा भाव पूर्ण पूज्य बापू जी के प्रति व्याख्या
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं
उनके अधर (होंठ) मधुर हैं, शब्द मधुर हैं, मानो शब्दों की माला हो, उनके मुख से प्रसन्नता झलकती है और हमें भी प्रसन्न करती है! उनके नेत्रों से करुना बरसती है, प्रेम बरसता है! सांसारिक आदमी तो विकारी दृष्टि से देखता है पर गुरुदेव ब्रह्मभाव से देखते हैं! उनका ह्रदय भी मधुर, उनके ह्रदय मे भी मधुरता है!
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं,
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
उनके वचन मधुर, उनका चरित्र मधुर, वस्त्र मधुर ! बापूजी के वस्त्रों की श्वेतिमा हमें ह्रदय की श्वेतिमा की प्रेरणा देती है ! ह्रदय की श्वेतिमा, सादगी की प्रेरणा ! वे किसी को प्रभावित नहीं करना चाहते परन्तु प्रकाशित करना चाहते हैं !
वेणु मधुरो रेणू मधुरो पाणी मधुरः पादौ मधुरो
नृत्यं मधुर सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
वेणु का एक अर्थ है श्री कृष्ण जो बंसी बजाते हैं वो मधुर है ! गुरुदेव की वाणी मधुर है ! रेणू यानी गुरु की चरण रज वो भी मधुर है ! नृत्य भी मधुर है ! बापूजी जब जाते वक्त नृत्य करके जाते हैं तो ऐसा लगता है साक्षात् चैतन्य महाप्रभु हैं ! उन्हें ऐसे देखकर तो जीवनभर जिसने नृत्य न किया हो वो भी खुशी से नृत्य करने लगे !
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुक्तम मधुरं
रूपम मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं!!
उनके जो गीत हैं जो कीर्तन है वो भी मधुर है उनका रूप मधुर है हमें शान्ति और आनंद प्रदान करता है उनका दर्शन ! उनका तिलक भी मधुर है हमारे गुरुदेव मधुर ही मधुर हैं !!
एक साधक भाई के सहयोग से ......
Param Pujya Sant Shri Asaramji, endearingly called 'Bapu', is a Self-Realized Saint from India. Pujya Bapuji preaches the existence of One Supreme Conscious in every human being; be it Hindu, Muslim, Jain, Christian, Sikh or anyone else. Bapuji represents a confluence of Bhakti Yoga, Gyan Yoga & Karma Yoga. This website is a humble attempt to spread the divine message of Pujya Bapuji.
Thursday, December 13, 2007
Tuesday, December 04, 2007
ॐ : तुम दाता हो दयालु - भजन : ॐ
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
तुम दाता हो दयालु , सबके ही काम आए ॥
मेरी चपल गति को , गुरुवर विराम दे दो
सब वासना मिटा कर , अपना ही ध्यान दे दो
मेरा मन मेरे ही , वश में नाही आए
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
प्रभु प्रीत का ये मीठा , अनुभव हुआ है प्यारा
बेकार जाता जीवन , तुमने प्रभु संवारा
अन्तर का तम मिटाकर , जगमग ज्योत जगाये
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
हरि नाम का खजाना , भीतर दिखा रहे हो
जिसे ढूंढते हैं बाहर , ख़ुद में बता रहे हो
बिन सदगुरु के बन्दे , इसको ना साध पाये
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
तेरे दरश का प्यासा , मनवा ये रो रहा है
कैसे संभालूँ इसको , सुध अपनी खो रहा है
नैनों से बहते मोती , छुपते नहीं छुपाये
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
"शुभ" दोनों हाथ फैले , बापू तुम्हारे आगे
नश्वर की नाही इच्छा , भक्ति प्रभु की मांगे
ऐसी अवस्था ला दो , हम ब्रह्मज्ञान पायें
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
मेरी हैसियत ही क्या थी , जो तुम ना साथ होते
जीवन ये जा रहा था , कभी हँसते कभी रोते
समता के पाठ तुमने , अदभुत दिए सिखाये
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
रचित द्वारा : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"
९९९०३४८६६४
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
तुम दाता हो दयालु , सबके ही काम आए ॥
मेरी चपल गति को , गुरुवर विराम दे दो
सब वासना मिटा कर , अपना ही ध्यान दे दो
मेरा मन मेरे ही , वश में नाही आए
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
प्रभु प्रीत का ये मीठा , अनुभव हुआ है प्यारा
बेकार जाता जीवन , तुमने प्रभु संवारा
अन्तर का तम मिटाकर , जगमग ज्योत जगाये
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
हरि नाम का खजाना , भीतर दिखा रहे हो
जिसे ढूंढते हैं बाहर , ख़ुद में बता रहे हो
बिन सदगुरु के बन्दे , इसको ना साध पाये
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
तेरे दरश का प्यासा , मनवा ये रो रहा है
कैसे संभालूँ इसको , सुध अपनी खो रहा है
नैनों से बहते मोती , छुपते नहीं छुपाये
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
"शुभ" दोनों हाथ फैले , बापू तुम्हारे आगे
नश्वर की नाही इच्छा , भक्ति प्रभु की मांगे
ऐसी अवस्था ला दो , हम ब्रह्मज्ञान पायें
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
मेरी हैसियत ही क्या थी , जो तुम ना साथ होते
जीवन ये जा रहा था , कभी हँसते कभी रोते
समता के पाठ तुमने , अदभुत दिए सिखाये
तुमने ही दया करके , बिगड़े काज बनाये ।
रचित द्वारा : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"
९९९०३४८६६४
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