Thursday, February 28, 2008

प्यारा बापू नाम
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कितना शुभ प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ।
श्री आसाराम नाम को , पूजे है जग सारा ॥

लीला तुम्हारी अद्भुत न्यारी , कैसे - कैसे खेल हैं ?
रूप मनुज का लेकर तुमने , किया ब्रह्म से मेल है
साँई लीलाशाह के नाम का , लेकर बापू सहारा
कितना शुभ प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ............

जन्म से पहले एक सौदागर , सुंदर झूला लाया
उतरेगा नक्षत्र अवनी पर , थाऊमल को बताया
माँ मेंहगीबा की कोख को , धन्य कहे जग सारा
कितना शुभ प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ............

नाम रतन से जिनके केवल , बनते बिगड़े काम हैं
योगलीला श्री आसारामायण , में पाते विश्राम हैं
पानी हो मुक्ति , ले लो तुम भी सहारा
कितना "शुभ" प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ............

"शुभ" चरनन में प्रीत बढे कुछ , ऐसा करो उपाय
ज्ञान बढे और घटे अविद्या , प्रभु प्रेम हो जाए
मोदीनगर में बापू , दर्शन मिले दोबारा
कितना "शुभ" प्यारा , बापू नाम तुम्हारा ............

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

Wednesday, February 27, 2008

श्री आसारामायण अनुष्ठान विधि
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जहाँ पर अनुष्ठान करना हो, वहाँ ईशान कोण ( पूर्व व उत्तर के बीच की दिशा) में तुलसी का पौधा रखें । पाँच चीजों (गोमूत्र , हल्दी, कुमकुम, गंगाजल, शुद्ध इत्र या शुद्ध गुलाबजल) से पूर्व या उत्तर की दीवार पर समान लम्बाई - चौडाई का स्वस्तिक चिन्ह ( ) बनाये तथा उसके बाजू में पूज्य बापू जी की तस्वीर रख दें। फिर जमीन पर सफ़ेद या केसरी रंग का नया , पतला कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर गेहूँ के दानों से स्वस्तिक बना कर उस पर पानी का लोटा रख दें । लोटे के ऊपरी भाग में आम के पत्ते रखें व उन पर नारियल रख दें ।
उसके बाद तिलक करके ' ॐ गं गणपतये नमः ' मंत्र बोलते हुए , जिस उद्देश्य से अनुष्ठान करना है उसका संकल्प करें । फिर श्वास भरकर रोकें और महा मृत्युंजय मंत्र या गायत्री मंत्र का तीन बार जप करें तथा मन में संकल्प दोहराएँ कि 'मेरा अमुक कार्य अवश्य पूर्ण होगा ।' ऐसा तीन बार करें । अनुष्ठान जितने भि इदन में पूर्ण करना हो उनमें प्रत्येक सत्र (बैठक) में यह मंत्र व संकल्प दोहराना है । प्रतिदिन निश्चित संख्या में पाठ करें । अनुष्ठान के समय धुप करें तथा दीपक जलता रहे ।
अनुष्ठान की समाप्ति पर लोटे का जल तुलसी की जड़ में साल दें । गेहूँ के दाने पक्षियों के डालें , नारियल प्रसाद रूप में बाँट दें या बहती जल में प्रवाहित कर दें । गुरुमंत्र के जप से १०८ आहुतियाँ दे कर हवन कर लें तथा एक या तीन अथवा पाँच -सात कन्याओं को भोजन करायें । दृढ श्रद्धा -विश्वास , संयम तथा तत्परता पूर्वक इस विधि से अनुष्ठान करने वालो की मनोकामना पूर्ण होने में मदद मिलती है ।

(स्वामी सुरेशानंद जी के प्रवचन से ) - लोक कल्याण सेतु : अंक १२६ । १६ दिसम्बर २००७ से १५ जनवरी २००८

Tuesday, February 26, 2008

ॐ -: हे प्रभु आनंद दाता [प्रार्थना] :- ॐ

हे प्रभु आनंद दाता, ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

निंदा किसीकी हम किसीसे भूल कर भी न करें
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूल कर भी न करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में
हे प्रभु आनंद दाता.................................

मातृभूमि मातृसेवा हो अधिक प्यारी हमें
देश की सेवा करें निज देश हितकारी बनें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा ॐ
प्रेम से हम दुःखीजनों की नित्य सेवा करें
हे प्रभु आनंद दाता.................................

Friday, February 15, 2008

गीता की सर्व हितकारी विद्याएँ
(पूज्य बापू जी के सत्संग -प्रवचन से)

'गीता' में मुख्य रूप से बारह विद्याएँ हैं :

१. शोक-निवृत्ति की विद्या
२. कर्तव्य कर्म करने की विद्या
३. त्याग करने की विद्या
४. भोजन करने की विद्या
५. पाप न लगने की विद्या
६. विषय-सेवन की विद्या
७. भगवद अर्पण की विद्या
८. दान देने की विद्या
९. यज्ञ विद्या
१०. पूजन विद्या
११. समता लाने की विद्या
१२. कर्मों को सत बनाने की विद्या

आश्रम द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'ऋषि प्रसाद' के अंक १७६ , अगस्त २००७ से संकलित
विस्तार आलेख के लिए कृपया उपरोक्त अंक पढ़ें .

Wednesday, February 13, 2008

---: १४ फरवरी २००८ :---

इस वर्ष १४ फरवरी को भारतीय संस्कृति की महत्ता को समझाने वाले ३ भिन्न उत्सव एक साथ हमें प्राप्त हो रहे हैं । पूज्य गुरुदेव ने भिन्न - भिन्न स्थानों पर आयोजित हुए सत्संग कार्यक्रमों में हमें हमारी संस्कृति के और निकट जाने की राह समझाई है । धन्य - धन्य हैं हम बालक / साधक जिन्हें ईश्वर साक्षात् नर रूप में मिले हैं ।

१) मातृ - पितृ पूजन दिवस

२) भीष्म तर्पण दिवस

३) माघ - शुक्ल अष्टमी

प्रत्येक त्यौहार का अपना - अपना महत्त्व है । संक्षेप में जानते है :....

मातृ - पितृ पूजन दिवस :- अपनी भारतीय संस्कृति बालकों को छोटी उम्र में ही बड़ी ऊँचाईयों पर ले जाना चाहती है। इसमें सरल छोटे-छोटे सूत्रों द्वारा ऊँचा, कल्याणकारी ज्ञान बच्चों के हृदय में बैठाने की सुन्दर व्यवस्था है।
मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। माता-पिता एवं गुरू हमारे हितैषी है, अतः हम उनका आदर तो करें ही, साथ ही साथ उनमें भगवान के दर्शन कर उन्हें प्रणाम करें, उनका पूजन करें। आज्ञापालन के लिए आदरभाव पर्याप्त है परन्तु उसमें प्रेम की मिठास लाने के लिए पूज्यभाव आवश्यक है। पूज्यभाव से आज्ञापालन बंधनरूप न बनकर पूजारूप पवित्र, रसमय एवं सहज कर्म हो जाएगा।
पानी को ऊपर चढ़ाना हो तो बल लगाना पड़ता है। लिफ्ट से कुछ ऊपर ले जाना हो तो ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। पानी को भाप बनकर ऊपर उठना हो तो ताप सहना पड़ता है। गुल्ली को ऊपर उठने के लिए डंडा सहना पड़ता है। परन्तु प्यारे विद्यार्थियो! कैसी अनोखी है अपनी भारतीय सनातन संस्कृति कि जिसके ऋषियों महापुरूषों ने इस सूत्र द्वारा जीवन उन्नति को एक सहज, आनंददायक खेल बना दिया।
इस सूत्र को जिन्होंने भी अपना बना लिया वे खुद आदरणीय बन गये, पूजनीय बन गये। भगवान श्रीरामजी ने माता-पिता व गुरू को देव मानकर उनके आदर पूजन की ऐसी मर्यादा स्थापित की कि आज भी मर्यादापुरूषोत्तम श्रीरामजी की जय कह कर उनकी यशोगाथा गाय़ी जाती है। भगवान श्री कृष्ण ने नंदनंदन, यशोदानंदन बनकर नंद-घर में आनंद की वर्षा की, उनकी प्रसन्नता प्राप्त की तथा गुरू सांदीपनी के आश्रम में रहकर उनकी खूब प्रेम एवं निष्ठापूर्वक सेवा की। उन्होंने युधिष्ठिर महाराज के राजसूय यज्ञ में उपस्थित गुरूजनों, संत-महापुरूषों एवं ब्राह्मणों के चरण पखारने की सेवा भी अपने जिम्मे ली थी। उनकी ऐसी कर्म-कुशलता ने उन्हें कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण के रूप में जन-जन के दिलों में पूजनीय स्थान दिला दिया। मातृ-पितृ एवं गुरू भक्ति की पावन माला में भगवान गणेष जी, पितामह भीष्म, श्रवणकुमार, पुण्डलिक, आरूणि, उपमन्यु, तोटकाचार्य आदि कई सुरभित पुष्प हैं।
तोटक नाम का आद्य शंकराचार्य जी का शिष्य, जिसे अन्य शिष्य अज्ञानी, मूर्ख कहते थे, उसने आचार्यदेवो भव सूत्र को दृढ़ता से पकड़ लिया। परिणाम सभी जानते हैं कि सदगुरू की कृपा से उसे बिना पढ़े ही सभी शास्त्रों का ज्ञान हो गया और वे तोटकाचार्य के रूप में विख्यात व सम्मानित हुआ। वर्तमान युग का एक बालक बचपन में देर रात तक अपने पिताश्री के चरण दबाता था। उसके पिता जी उसे बार-बार कहते - बेटा! अब सो जाओ। बहुत रात हो गयी है। फिर भी वह प्रेम पूर्वक आग्रह करते हुए सेवा में लगा रहता था। उसके पूज्य पिता अपने पुत्र की अथक सेवा से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद देते -
पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम। लोगों के तुमसे सदा, पूरण होंगे काम।

अपनी माताश्री की भी उसने उनके जीवन के आखिरी क्षण तक खूब सेवा की।
य़ुवावस्था प्राप्त होने पर उस बालक भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की भांति गुरू के श्रीचरणों में खूब आदर प्रेम रखते हुए सेवा तपोमय जीवन बिताया। गुरूद्वार पर सहे वे कसौटी-दुःख उसके लिए आखिर परम सुख के दाता साबित हुए। आज वही बालक महान संत के रूप में विश्ववंदनीय होकर करोड़ों-करोड़ों लोगों के द्वारा पूजित हो रहा है। ये महापुरूष अपने सत्संग में यदा-कदा अपने गुरूद्वार के जीवन प्रसंगों का जिक्र करके कबीरजी का यह दोहा दोहराते हैं -
गुरू के सम्मुख जाये के सहे कसौटी दुःख। कह कबीर ता दुःख पर कोटि वारूँ सुख।।
सदगुरू जैसा परम हितैषी संसार में दूसरा कोई नहीं है। आचार्यदेवो भव, यह शास्त्र-वचन मात्र वचन नहीं है। यह सभी महापुरूषों का अपना अनुभव है।
मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। यह सूत्र इन महापुरूष के जीवन में मूर्तिमान बनकर प्रकाशित हो रहा है और इसी की फलसिद्धि है कि इनकी पूजनीया माताश्री व सदगुरूदेव - दोनों ने अंतिम क्षणों में अपना शीश अपने प्रिय पुत्र व शिष्य की गोद में रखना पसंद किया। खोजो तो उस बालक का नाम जिसने मातृ-पितृ-गुरू भक्ति की ऐसी पावन मिसाल कायम की।
आज के बालकों को इन उदाहरणों से मातृ-पितृ-गुरूभक्ति की शिक्षा लेकर माता-पिता एवं गुरू की प्रसन्नता प्राप्त करते हुए अपने जीवन को उन्नति के रास्ते ले जाना चाहिए।

भीष्म तर्पण दिवस एवं शुक्ल अष्टमी :- भीष्म जी को जल अर्पण करें और संतान की प्राप्ति की इच्छा करें तो तेजस्वी आत्मा आती है ऐसा 14 फरवरी है इस बार शुक्ल अष्टमी तिथि, धवल निबंध ग्रंथ के अनुसार इस तिथि को भीष्म जी का तर्पण दिवस भी है ब्रह्मचारी भीष्म जी का तर्पण करने से लड़के लड़कियाँ तेजस्वी हो सकते हैं

नारायण हरि

Wednesday, February 06, 2008

बापूजी का पावन सन्देश
प्रति वर्ष १४ फरवरी को मनाये मात्र - पितृ पूजन दिवस

कैसे मनाये मात्र - पितृ पूजन दिवस ?

इस दिवस बच्चे-बच्चियां माता - पिता को प्रणाम करे तथा माता - पिता अपने संतानों को प्रेम करे ! संतान अपने माता - पिता के गले लगे ! इससे वास्तविक प्रेम का विकास होगा ! बेटे बेटियाँ माता - पिता में ईश्वरीय अंश को देखे . बच्चे-बच्चियां माता - पिता का तिलक पुष्प आदि के द्वारा पूजन करे ! माता - पिता भी बच्चों को तिलक करे आशीर्वचन कहे !

बालक गणेश की पृथ्वी परिक्रमा , भक्त पुन्दालिक की मात्र - पितृ भक्ति , श्रवण कुमार की मात्र - पितृ भक्ति इन कथाओं का पठन करे अथवा कोई एक व्यक्ति कथा सुनाये और अन्य लोग श्रवण करे !

इस दिन बच्चे-बच्चियां पवित्र संकल्प करे : "मैं अपने माता - पिता और गुरुजनों का आदर करूँगा / करुँगी ! मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जाने वाली उनकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्त्यव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करुँगी / करूँगा ! नारायण नारायण नारायण , ॐ ॐ ॐ "

माता - पिता 'बाल संस्कार युवाधन सुरक्षा ' , 'तू गुलाब होकर महक ' , 'मधुर व्यवहार ' , इन पुस्तकों को अपने क्षमातानुरूप बांटे बंटवाये तथा तथा प्रतिदिन स्वयं पढ़ने का व बच्चों से पढ़ने का संकल्प लें !

मात - पिता प्रभु गुरु चरणों में प्रणवत बारम्बार , हम पर किया बड़ा उपकार ........
भूलो सभी को तुम मगर माँ - बाप को भूलना नही ........

Friday, February 01, 2008

संत वचन - अमृत वाणी

मन के चाल-चलन को सतत देखें मन बुरी बात में जाने लगे तो उसके पेट में ज्ञान का छुरा भोंक दें । चौकीदार जागता है तो चोर कभी चोरी नहीं कर सकता । आप सजाग होंगे तो मन भी बिल्कुल सीधा रहेगा ।

- परम पूज्य लीलाशाहजी महाराज
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जो ज्ञानयुक्त सेवा करता है वहा अवश्य सफल होता है रोज सुबह नींद में से उठके प्रभु की प्रीति पाने का शुभ संकल्प करो, अपने स्वास्थ्य की समस्याओं का समाधान खोजो और निर्णय करो की दो को हँसाऊँगा, दो के आंसू पोछूँगा

- परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू
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