Thursday, July 31, 2008

अनमोल सत्संग : ॐ ॐ

"कपट गाँठ मन में नहीं सबसे सहज स्वभाव ।
नारायण वा संत की नदी किनारे नाव ॥ "
अपनी मानते हैं तो हमको राग पैदा होगा और हम फसेंगे । अपनी भले ही न हो पर आप दूसरों का हित चाहो । हित आए इसीलिए हित मत करो , बस अपना कर्तव्य करो ।

"मेरो चिन्त्यो होत नहीं , हरि को चिन्त्यो होय ।
हरि को चिन्त्यो हरि करे , मैं रहूँ निश्चिंत ॥ "


यदि कार्य शास्त्र अनुकूल हो और हित का हो तो करो । सभी दुनिया के गुरु मिलकर भी एक आदमी को साक्षात्कार नहीं करा सकते जब तक उसमें स्वयं तड़फ पैदा नहीं होगी ।
"ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया तो अंत में टोना ही पड़ेगा.."
वाह-वाही का रस लिया और निंदा हुई तो रोओगे ।
चाहे बहार का सुख हो , चाहे भावना का सुख हो , सदा एक सा नहीं रहेगा । ये प्रकृति का सिद्धांत है ।
सत् तीनों कालों में एक सा होता है . सच और भावनाएं सबकी अलग-अलग हैं ।
आकाश व्यापक है . आकाश का कभी कुछ नहीं बिगड़ता . आकाश सबको ठौर देता है ।
छोटे में छोटा देखना हो तो परमात्मा और बड़े में बड़ा देखना हो तो परमात्मा ।
ये वहम है की हम इतना जप करेंगे तो परमात्मा मिलेगा . अरे .... वो सदा मिला हुआ है ।
सब आता - जाता है पर परमात्मा वाही का वाही । उस परमात्मा को पाए बिना कुछ भी पाया , टिकेगा नहीं ।
"सुन्या सखणा कोई नहीं , सबके भीतर लाल .
मुरख ग्रंथि खोले नहीं , करमी भयो कंगाल .. "


पति से अलग या पत्नी से अलग रहोगे तभी परमात्मा मिलेगा ... नहीं - नहीं ... वो तो सदा मिला हुआ है । हटानी है तो सिर्फ़ अपनी वासना हटाओ फिर चाहे घर में रहो या बाहर .....
करने की शक्ति है तो औरों के लिए करो तो करने की शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा । मानने की शक्ति है तो परमात्मा को मानो तो मानने की शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा । जानने की शक्ति है तो परमात्मा को जानो तो जानने के शक्ति का सदुपयोग हो जाएगा ।
ईश्वर को पाने की इच्छा मात्र से पा सकते हो , इतना सरल है ।

नारायण हरि --
आज सुबह (३१ जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन । यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

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