Thursday, July 24, 2008

: विडियो सत्संग :

सारा जगत वासुदेव की सत्ता से भरा हुआ है ।
भले वासुदेव परमात्मा का अनुभव अभी ना होता परन्तु ये पक्का कर लो की वह सर्व व्याप्त है ।
ऐसा खेल रच्यो मेरे दाता , जहाँ देखूं वहां तू को तू ......
वासुदेव सर्वमिति ....

मेरे मन की हो! यदि ऐसी भावना है तो बड़ा भारी दोष है ।
भगवन बड़े दयालु हैं की सब हमारी चाही नही होती . गुरुदेव ने बहुत से उदाहरण भी दिए ।
अपनी चाही का आग्रह मत करो ।
नौ ग्रह भी इतना नुक्सान नही कर सकते जितना अपनी चाही जैसा ग्रह नुक्सान कर सकता है ।
किसी को डांटना भी पड़ता है तो "परस्परं भावयन्तु" के भाव रखते हुए कि उसका मंगल कैसे हो? उसका विकास कैसे हो?
करने की शक्ति , मानाने की शक्ति और जानने की शक्ति का सदुपयोग करो ।
परमात्मा जो समग्र सृष्टि को चला रहा है वो तुम्हारा परम हितैषी है , ऐसा अडिग विश्वास रखो ।
जानो तो अपने को जानो , करो तो दूसरों के हित की करो और मानो तो प्रभु को मानो ।
संत कबीर वाणी :
"हरि सम जग कछु वास्तु नहीं , प्रेम पंथ सम पंथ .
सतगुरु सम सज्जन नहीं , गीता सम नहीं ग्रन्थ "


नारायण हरि
--आज सुबह (२४ जुलाई २००८) सोनी टेलीविजन पर प्रसारित सत्संग के कुछ अनमोल वचन ।
यह पूज्य गुरुदेव की अमृतमयी वाणी को सुन कर लिखा गया है अतः लिखने में त्रुटि होने की संभावना है । कृपया यदि कोई त्रुटि हो गई हो तो क्षमा करें।

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