Thursday, December 31, 2009

सत्संग लहरियाँ

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जो लोग भीष्ण संग्राम करके, क्रूर नरसंहार करके, बड़े-बड़े युद्ध खेलकर सत्ता की गद्दी पर पहुँच जाते हैं उनका नाम सुनकर उनको याद करके लोग आदर से नतमस्तक नहीं होते लेकिन विश्व में कुछ ऐसे आत्म-विजेता लोग हो जाते हैं, नतमस्तक हो जाते हैं। भीष्म, हरिश्चन्द्र, भरत, शंकराचार्य, महावीर, वल्लभाचार्य, रामानुजाचार्य, मीराबाई, एकनाथजी, शिवाजी महाराज, तोतापुरी, रामकृष्ण आदि ऐसी विभूतियाँ हैं। जिन्होंने अपने मन को, अपनी इन्द्रियों को संयत किया है, जिन्होंने अपने को विकारी सुखों से बचाकर निर्विकारी नारायण सुख का प्रसाद पाया है ऐसे लोग चाहे इस देश के हों चाहे परदेश के हों, उनको समाज ने खूब आदर-मान से याद रखा है। लोगों ने सुकरात को याद रखा है, महात्मा थोरो को लोग याद करते हैं जिसस को लोग याद करते हैं, धन्ना जाट को लोग याद करते हैं, वल्लभाचार्य, रामानुजाचार्य एवं अन्य कई महापुरूषों को, आत्मा-परमात्मा में विश्रान्ति पाये हुए संतों को हम बड़े आदर से याद करते हैं। शबरी भिलनी हो चाहे रोहिदास चमार हो, गार्गी हो चाहे राजा जनक हों, एकनाथजी हों या एकलव्य हो, जिन्होंने अपनी इन्द्रियों को वश करके मन को परमात्मा में लगाया है या लगाने का दृढ़ प्रयत्न किया है ऐसे लोग जन्म लेकर मर नहीं जाते लेकिन जन्म लेकर अमर आत्मा की ओर चल देते हैं, संसार में अपनी मधुरता, अपनी शुभ कीर्ति छोड़ जाते हैं।


भगवान श्रीकृष्ण भगवद् गीता में अर्जुन से कहते हैं-
संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।।

'इन्द्रिय समुदाय को सम्यक प्रकार से नियमित करके सर्वत्र समभाववाले, भूत मात्र के हित में रत वे भक्त मुझ ही को प्राप्त होते हैं।'
(भगवद् गीताः 12.4)
मनुष्य को विकारी आकर्षण ने तुच्छ बना दिया है। जिनके जीवन में संयम है, नियम है ऐसे इन्द्रियों को संयत करने वाले लोग, सब भूतों के हित में रमने वाले लोग, समभाव से मति को सम रखने वाले वे लोग मतिदाता के उच्च अनुभव में स्थिति पा लेते हैं। ऐसे लोग भगवान को प्राप्त कर लें इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। यह कोई जरूरी नहीं है कि वह आदमी अच्छा पढ़ा-लिखा होना चाहिए या अनपढ़ होना चाहिए, बहुत धनवान होना चाहिए या निर्धन होना चाहिए, बच्चा होना चाहिए या जवान होना चाहिए या बूढ़ा होना चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं है।

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