Wednesday, November 10, 2010

राजा चंद्रसेन एक न्यायप्रिय शासक था। वह कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होने देता था। एक बार पड़ोसी राजा ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया।चंद्रसेन स्वयं पड़ोसी राजा से भिड़ गया। थोड़ी ही देर में चंद्रसेन ने उसे जमीन पर गिरा दिया और उसके सिर पर तलवार का वार करने ही वाला था कि दूसरे राजा के मुंह से कुछ अपशब्द निकल गए। अपशब्द सुनकर चंद्रसेन ने अपनी तलवार रोक ली और कुछ सोचते हुए उसे म्यान में रख लिया। वहां उपस्थित सभी सैनिक आश्चर्य में पड़ गए।
वे चंद्रसेन से बोले, 'आपने अपना हाथ क्यों रोक लिया। इसे मार डालिए। इसे जिंदा छोड़ना ठीक नहीं होगा।'सैनिकों की बात सुनकर चंद्रसेन ने कहा, 'मैं युद्ध अपने देश की रक्षा के लिए लड़ रहा हूं। यदि मैं इसी समय इसे मार देता हूं तो मुझे अफसोस नहीं होगा मगर इसने मुझे अपशब्द कहे, जिसके कारण मेरी लड़ाई हमारे राष्ट्र की न होकर व्यक्तिगत हो गई। देश रक्षा के लिए मैं अपने पूरे युद्ध कौशल से लड़ रहा था, किंतु व्यक्तिगत होने पर मैं गुस्से में आ गया। यदि मैं इसे मार देता तो मैं स्वार्थी कहलाता।' इतना कहकर चंद्रसेन ने दूसरे राजा को तलवार दी और युद्ध करने को कहा। लेकिन उस राजा ने लड़ने से इनकार कर दिया और उसके आगे सिर झुकाकर कहा, 'आपने अपने उच्च विचारों से मुझे जीत लिया है। अब आप चाहे तो मुझे मार दें।' चंद्रसेन ने उस पर वार नहीं किया और उसे क्षमा कर दिया। वह राजा सेना सहित लौट गया।

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