भजन : छवि तेरी प्रगट होती
मेरी गिनती मेरी विनती, तुम्ही से ही शुरू होती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....
सुखी जीवन के तुम आधार, सदा करते हो भाव से पार
चरण धूलि जो आँखों में, लगा लूँ तो बने ज्योति
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....
गुरुवर आपने अपने ह्रदय में, एक जगह दे दी
बड़ी किरपा की वरना तो, मेरी किस्मत ही थी सोती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....
करूँ चिंतन सदा तेरा, बने ऐसा ही मन मेरा
ह्रदय बन जाये गुरुद्वारा, वाणी हो जाये गंगोत्री
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....
गुरुवर परम हितैषी हैं, यह वेदों ने बताया है
दिया “शुभ” आत्म का आनंद, किया कंकड से मुझे मोती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....
रचना: अभिषेक मैत्रेय “शुभ”
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