Monday, April 21, 2008

साँई तेरी शान निराली
शान निराली साँई तेरी शान निराली
तीन लोक की मेरे दाता करे रखवाली

कैसे - कैसे अनुभव अपने दुनिया को बतलायें
महिमा तेरी गा पायें वो शब्द कहाँ से लायें
तेरे नाम की ज्योत से है -२ दुनिया उजियाली ,
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

मुख मंडल पर आभा ऐसे जैसे सूरज चमके
एक झलक से छंट जाते हैं काले बदल गम के
भर देते हैं झोली उसकी -२ जो भी आता खाली
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

ब्रह्मज्ञान का दिया जलाकर जग उजियारा करते
सत्संग रुपी गंगाजल से सबको निर्मल करते
हर दर पर ना मस्तक टेकें -२ हम बापू के सवाली
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

संत शरण जो जन पड़े वो जन उद्धरणहार
संत की निंदा नानका बहुरि - बहुरि अवतार
सत्संग रुपी "शुभ" अमृत की -२ भर-भर देते प्याली
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

मैं मेरी के फंद हटाकर प्रभु से नाता जोड़ते
सुनकर के फरियाद भगत की नंगे पैरों दौड़ते
हमने पाकर शरण गुरु की -२ किस्मत अपनी जगा ली
शान निराली साँई तेरी शान निराली .....

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

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