Wednesday, March 26, 2008

- : साखियाँ : -

बन जाओ चाहे सूरमा , बनो या मालामाल ।
सतगुरु भक्ति नही दिल में , तो सबसे बड़े कंगाल ॥

मधु जैसे हैं मधुर वो , चित्त है बहुत विशाल ।
दया धर्म की मूर्ति वो , मेरे सतगुरु दीन दयाल ॥

हम साधक जिन्हें पूजते , वो सतगुरु आसाराम ।
नाम रटन से जिनके , बनते बिगड़े काम ॥

गुरुदेव की छाया में , जीवन वृक्ष बढे ।
संस्कारों के फूल -फल , श्री गुरु चरणों में चढ़े ॥

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

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