Saturday, April 09, 2011

सत्संग सुनते सुनते एक एक क्षण अश्वमेध यज्ञ के पुण्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, सत्संग मुक्ति देता है। इतना ही नहीं, सत्संग हृदय में प्यार पैदा करता है। इतना ही नहीं, सत्संग श्रेष्ठ नागरिक बनाता है।

सत्संग जीवन्मुक्त होने का मार्ग बताता है। इतना ही नहीं, व्यवहार में उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने की मास्टर की सत्संग तुम्हारे हाथ में धर देता है। जब, वहाँ जिस कुँजी की जरूरत पड़े वह मिल जाया करती है। यह सब सत्संग की बलिहारी है।

वेदान्त केवल जंगलों में जाकर पकाने की विद्या नहीं है। यह तो तुम्हारे अपने घर के चूल्हे पर पकाने की विद्या है। .......... पूज्यपाद श्रीबापूजी

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