Monday, September 24, 2007

प्रभु तुम्हारी याद [कविता]

दुखों से अगर चोट खायी ना होती ।
तुम्हारी प्रभु याद आयी ना होती ॥

जगाते ना ग़र तुम गुरू ज्ञान द्वारा ।
कभी हमसे कोई भलाई ना होती ॥
कहीँ भी हमें चैन मिलता ना जग में ।
शरण यदि परम शांतिदायी ना होती ॥
सदा बंद रहती ये आँखें ह्रदय की ।
जो अपनी खबर तुमसे पायी ना होती ॥
दयासिंधु तुमको समझ ही ना पाते ।
समय पर जो लज्जा बचाई ना होती ॥
किसी का कहीँ भी नही था ठिकाना ।
तुम्हारे यहाँ जो सुनवाई ना होती ॥
बता दो प्रभु ! तुमको पाऊं मैं कैसे ।
विमुख होके सन्मुख अब आऊँ मैं कैसे ॥
विषय वासनायें निकलती नहीं हैं ।
ये चंचल चपल मन मनाऊँ मैं कैसे ।
कभी सोचता हूँ तुमको रोकर पुकारूं ।
पर ऐसा ह्रदय को बनाऊं मैं कैसे ॥
कठिन मोहमाया में अतिशय भ्रमित हूँ ।
प्रभो ! बिन दया पार पाऊँ मैं कैसे ॥
ह्रदय दिव्य आलोक से जो विमल हो ।
विनय किस तरह तो सुनाऊँ मैं कैसे ॥
दयामय तुम्हीं मुझ "पथिक" को संभालो ।
मैं कितना पतित हूँ दिखाऊँ मैं कैसे ॥


पथिक जी महाराज

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